क्यों कुरेदते हो
पुरानी बातें?
रूह पर उकेरे
यादों और दर्द के,
निशां कभी मिटते हैं क्या ?
खुरच कर हटाने की
कोशिश में कुछ ज़ख़्मों
के निशां रह जातें हैं
नक़्क़ाशियों से।
कई अधूरी ख़्वाहिशें,
गहनों में जड़े नागिनों सी
अपनी याद दिलाती हैं।
जब करो चर्चा,
गुज़रते हैं उसी दौर से।
आत्मा जानती है
क्यों
यादों के साथ
मेरी दुष्टता का
नहीं
शांति से छोड़ देता है
चोट
मेरे पास मेरा है
मेरे पापों से खुद बनाया
मेरी आत्मा
मेरे बुरे तरीके ढूंढो
मेरे बचपन में वापस
मेरे पास है
सपने में कोई गहना नहीं मिला
मैं कोशिश कर रहा हूँ
एक सपने में समझने के लिए
क्या
वो आत्मा
मुझसे कहता है
तो मैं
कदम दर कदम
मैं कोशिश करूँगा
हर दिन बेहतर करने के लिए
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🙏🙏
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आपकी इन पंक्तियों ने मुझे एक बड़ी पुरानी श्वेत-श्याम फ़िल्म ‘शिकस्त’ (1953) में लता मंगेशकर एवं तलत महमूद के एक यादगार युगल गीत (जो मेरे हृदय के अत्यन्त निकट है) – ‘जब-जब फूल खिले, तुझे याद किया हमने’ की ये पंक्तियां याद दिला दीं रेखा जी :
मन को मैंने लाख मनाया
पर अब तो है वो भी पराया
ज़ख़्म किए नासूर तेरी याद के मरहम ने
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शुक्रिया जितेंद्र जी।
कितनी गहरी बातें पहले के गीतों में होतीं थी। मैंने यह फ़िल्म नहीं देखी है। कोशिश करूँगी देखने और गीत को सुनने की।
मुझे लगता है, मैं जो लिखती हूँ, वे सारी बातें किसी ना किसी ने कह रखीं है।
एक बात मुझे महसूस होता हैं। अक्सर लोग पुरानी बातें पूछते रहते हैं। उनके लिए तो शायद यह सिर्फ़ एक कहानी या घटना होती है। पर जो गुज़रा है उन बातों से , वह बताने के दौरान फिर गुजरता है, दर्द भरी उन्ही बातों से। यह लोग नहीं समझते।
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ठीक कहा आपने। यदि पूछने वाले सचमुच संवेदनशील हों तो वे ऐसी बातें पूछें ही नहीं।
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धन्यवाद जितेंद्र जी। जी बिलकुल।
मुझे लगता है ऐसी बातें सिखाईं जानी चाहिए। कौन जाने, शायद मैंने भी कभी अनजाने में ऐसा किया हो।
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