उनसे सच की
क्या उम्मीद करना,
जो ख़ुद से भी झूठ बोलतें हैं?
बड़े सलीक़े से झूठ बोलते हैं।
तय है, हर लफ़्ज़ से, बेख़ौफ़ टपकते झूठ का हुनर ,
मुद्दतों में सीखा होगा।
वे हमें नादाँ कहते हैं।
हैं नादान क्योंकि
हमने भी भरोसा करना ,
यक़ीं करना अरसे
से सीखा है।
किसी अन्य व्यक्ति द्वारा बताए जाने पर सत्य की जाँच करें
एक जीभ स्क्रीन के साथ बोली जाने वाली
शब्द है
शुद्ध
अगर यह
बिना इरादे के बोला गया
बहुत से लोग इसे धोना चाहते हैं
इससे पहले कि वे इसे अपने होठों से चखें
भी
जब हम दूसरे
एक चीज से ज्यादा कुछ नहीं हैं
वह एक हम
एक लात के साथ
दुनिया से
बना सकते हैं
वो आत्मा
हमें एक सपने में बताता है
से क्या
हम अपनी जुबान का इस्तेमाल करते हैं
झूठ का
खबरदार
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🙏
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इन अल्फ़ाज़ में बसे अहसास को मैं अपने भीतर महसूस कर सकता हूँ। जानता हूँ कि जब भरोसा टूटता है तो भरोसा करने वाले को कितना दर्द होता है। और भरोसा तोड़ने वाले? ख़ुद तक से झूठ बोलने और फ़रेब करने वाले? वे तो वाक़ई इसके आदी हो चुके होते हैं। शायद वे कभी जान ही नहीं पाते कि वे क्या कर रहे थे (और करते चले आ रहे हैं)।
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लगता है आपने भी धोखे खाए है। इसलिए मेरी लिखी पंक्तियों को आप महसूस कर पा रहे हैं।
शायद ज़्यादा धोखा, भरोसा करने वालों को मिलता है। धोखा देने वाले बड़ा सम्भाल कर दूसरो पर यक़ीन करते है।
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सही कहा हम नादान है, क्योंकि हम भरोसा करते है। वो भी उन पर जिन्हें हम पर ही भरोसा नहीं है। 😂
“कहा पागल जमाने ने
मेरे इस नादाने दिल को
कहाँ भरोसा कर बैठा
मेरे नादाने दिल ये तू
के अब टूटेगा जब भी तू
कोई आवाज ना होगी
के आयेगी जुबान पे जब
दर्द की ये कहानियाँ
बयां करने को तेरे पास कोई अल्फ़ाज़ ना होंगे।”
इसीलिए मैं चुप ही रहती हूँ।
I’m sorry, मैं जब भी ऐसी कोई कविता पढ़ती हूँ।
मेरे अंदर की कवियत्री जाग उठती है 😂😂
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तुमने कविता की तारीफ़ सुंदर कविता से दी है। धन्यवाद।
देखो प्रीत, दुनिया ऐसी हीं है। भरोसा करना तो साफ़ दिल वालों की ख़ासियत होती है। इतनी ख़ूबसूरत कविता लिखने के बाद don’t be sorry. जाग जाने दो इस कवयित्री को। बेख़ौफ़ दिल की बातें लिख डालो। 😊💕
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