मंज़िल

मंज़िल

यक़ीं करो अपने आप पर।

और नज़र रखो मंज़िल पर।

इस दुनिया में इतना

है टोका-टोकी।

ग़र लोगों की बातें

सुनते रहे,

मंज़िल तक नहीं

पहुँच पाएँगे कभी।

10 thoughts on “मंज़िल

  1. हम सभी हैं
    कतार में
    क्या हम इसमें विश्वास करते हैं
    या नहीं
    चाहे हम
    दुनिया
    हकीकत देख रहे हैं या नहीं
    हम खुद पर विश्वास करते हैं या नहीं
    हम सभी
    हम आगे बढ़ रहे हैं
    हम ज्ञानी हैं या नहीं
    हमारा असली लक्ष्य
    आध्यात्मिक रूप से अच्छा
    सांसारिक शक्ति के दुष्ट
    हमारा लक्ष्य हम सभी के लिए मृत्यु है

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  2. हाँ रेखा जी। कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना। लोगों की टोका‌टाकी और टिप्पणियों पर ग़ौर करते रहे तो एक कदम चलना भी मुश्किल हो जाएगा।

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    1. समझ नहीं आता, यह आजकल के समय का असर है या दुनिया हीं ऐसी है।
      मैं अक्सर जवाब नहीं देतीं हूँ , पर मन की बातें पन्नों पर लिखती रहती हूँ।

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  3. यह आजकल के समय का प्रभाव नहीं है रेखा जी। दुनिया हमेशा से ऐसी ही है। इसलिए समझदारी भी हमेशा से ही इसी में रही है कि दुनिया की बातों पर कान दिये बिना अपनी राह चलते रहो, अपना काम करते रहो। दुनिया की जीभ कौन पकड़ सका है आज तक? मैंने भी एक मुद्दत से कहने-सुनने की बजाय अपने दिल की बात (या यूं कहिए कि दिल कि घुटन) को लफ़्ज़ों में काग़ज़ पर उतार देने का नज़रिया ही अख़्तियार कर लिया है। किससे बात करें? अपने जैसे लोग मिलते भी तो नहीं।

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