दे कर चुभन और
हाल पूछते हैं।
ना मिलने पर
सवाल पूछतें हैं।
कुरेदतें हैं,
ज़ख्मों को
मलहम के बहाने।
उन लोगों का
क्या किया जाए?
दे कर चुभन और
हाल पूछते हैं।
ना मिलने पर
सवाल पूछतें हैं।
कुरेदतें हैं,
ज़ख्मों को
मलहम के बहाने।
उन लोगों का
क्या किया जाए?
हम सब रक्षाहीन हैं
उग्र डंक के खिलाफ
जिसका हम पूर्वाभास नहीं कर सकते
जिसे हम खुद नहीं बदल सकते
जहां हमारे पास आवश्यक दवा की कमी है
हमें दर्द सहना होगा
उपचार चिकित्सक
बीमारी और दुख के खिलाफ
हमारे भीतर है
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🙏
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🙏🙏
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लता मंगेशकर जी की गाई हुई फ़िल्म ‘बहू बेगम’ (1967) की यह नज़्म याद दिला दी आपने:
दुनिया करे सवाल तो हम क्या जवाब दें
पूछे कोई जो हाल तो हम क्या जवाब दें
ख़ामोशी से बेहतर जवाब क्या दिया जा सकता है ऐसे लोगों को जो मरहम लगाने के बहाने ज़ख़्म पर नमक बुरकने आते हों। वे न मिलने की शिकायत भी करें तो चुप रहना ही बेहतर (मेरी नज़र में)।
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हाँ , यह गीत बिलकुल सच्ची अभिव्यक्ति है। खामोशी सर्वोत्तम है। पर कुछ खामोशी का मतलब कमज़ोरी समझते है।
मज़ेदार बात यह है जितेंद्र जी, मैं यह सब लिखती हूँ , जिसे ऐसे कुछ परिचित पढ़ते भी हैं ( Instagram पर) ।
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Thanks 😊
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