कद्र
किसी के लिए सब कुछ
दिल से करो ।
फिर भी तुम्हारे वजूद
का मोल ना हो।
कद्र न हो तुम्हारी।
तब दूरियाँ हीं
समझदारी है।
कद्र
किसी के लिए सब कुछ
दिल से करो ।
फिर भी तुम्हारे वजूद
का मोल ना हो।
कद्र न हो तुम्हारी।
तब दूरियाँ हीं
समझदारी है।
Meaningful poem!
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Thanks a lot Ranjana.😊
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💐💐
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सम्मान
आत्मा को
स्वयं के लिए
और अन्य सभी
उस का ख्याल रखना
क्या
तुमसे
वो आत्मा
आपको सपने में बताता है
के साथ नहीं
ज्ञान की बातें
दूसरों के लिए
आपका अपना पंथ
इंगित करें
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🙏
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सच कहा रेखा जी आपने। जगजीत सिंह जी की गाई हुई मशहूर ग़ज़ल है:
समझते थे मगर फिर भी न रक्खी दूरियां हमने
चिराग़ों को जलाने में जला लीं उंगलियां हमने
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यह अक्सर होता है, रिश्ता निभाने की कोशिश में। देखिए यह ख़ूबसूरत ग़ज़ल चंद पंक्तियों में इस बात को कितने नज़ाकत से कह गई।
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