ज़ुबान

ज़ुबान

ज़ुबान बंद रखना

तो ठीक है।

पर बिन बोले बातों का

वजन, बोझ बन जाता है।

और चुभता है, टूटे आईने

की किरचियों सा।

खामोशी की अदा

तब अच्छी है।

जब सुनने वाले के

पास मौन समझने

वाला दिल हो।

वरना लोग इसे

कमजोरी समझ लेतें हैं।

29 thoughts on “ज़ुबान

  1. एक चलनी के रूप में जीभ
    वह अपने शब्दों को बांटती है
    भूसे की तरह
    बारिश में

    इसका जवाब नहीं देना
    तो डंक पड़ जाता है
    हाथ में
    यह आदमी
    शब्दों का
    बना दिया
    वापस मिला

    आत्मा की दर्पण छवि
    अकेले की तरह
    यादों के साथ
    बाढ़

    ज्वार का
    आंतरिक कहानियां
    अतीत की
    बचना मत

    कोई नहीं होगा
    अंदर तूफान
    उससे सुनें

    लोग कहेंगे
    वह शैतान है
    वह अपने दिमाग से बाहर है

    Like

      1. वाणी में शहद घोलना सीख लीजी,
        जरा प्यार से बोलना सीख लीजे।

        चुप रहने के, यारो बड़े फायदे हैं,
        जुबा वकत पर खोलना सीख लीजे।

        कुछ कहने से पहले जरा सोचिए,
        खयालों को खुद तोलना सीख लीजे।

        पटाखे की तरह फटने से पहले,
        रोशनी के रंग घोलना सीख लीजे।

        ये किसने कहा होठ सीकर के बैठो
        जरूरत पर मुंह खोलना सीख लीजे।

        That’s all what I remeber. It’s really a great poem.. hope u liked it!

        Liked by 2 people

      2. Honestly saying, I’m a child only.( Can say ) It was my last year’s book in which I found this poem.
        And if also talking about childhood, I feel it was fun and enjoyable. 😄

        Liked by 2 people

    1. * मेरी बचपन से कम बोलने की आदत रही है। मुझे यह पसंद भी है। लेकिन मौन की भाषा कुछ लोग अनसुना करते हैं। अब, समय ने यह वास्तविकता सिखाईं हैं।
      बहुत शुक्रिया। आपके विचार बहुत जगहों पर सही है।

      Liked by 2 people

Leave a Reply

Please log in using one of these methods to post your comment:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s