रौशनी
सूरज डूबेगा नहीं,
तब निकलेगा कैसे?
चाँद अधूरा नहीं होगा,
तब पूरा कैसे होगा?
अँधेरा नहीं होगा,
तब रौशनी का मोल कैसे होगा?
अमावस नहीं होगा,
तब पूर्णिमा कैसे आएगी।
यही है ज़िंदगी।
इसलिय ग़र चमक कम हो,
रौशनी कम लगे।
बिना डरे इंतज़ार करो।
फिर रौशन होगी ज़िंदगी।
Really Nice and appreciating poem.
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Thank You❤
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Welcome!
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🌸😊
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https://www.researchgate.net/publication/288092380_Women_war_survivors_of_the_1989-2003_conflict_in_Liberia_The_impact_of_sexual_and_gender-based_violence
On Sun, Nov 28, 2021, 6:36 AM The REKHA SAHAY Corner! wrote:
> Rekha Sahay posted: ” रौशनी सूरज डूबेगा नहीं, तब निकलेगा कैसे? चाँद अधूरा > नहीं होगा, तब पूरा कैसे होगा? अँधेरा नहीं होगा, तब रौशनी का मोल कैसे होगा? > अमावस नहीं होगा, तब पूर्णिमा कैसे आएगी। यही है ज़िंदगी। इसलिय ग़र चमक कम > हो, रौशनी कम लगे। बिना डरे इंतज़ार करो। ” >
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Thanks for sharing the above link . It’s informative.
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बड़ी अच्छी बात कही रेखा जी आपने। रामावतार त्यागी जी का एक शेर है:
रौशनी गर चाहिए तो लौ ज़रा मद्धम रखो
चाहिए मुझसे ग़ज़ल तो आंख मेरी नम रखो
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बेहद ख़ूबसूरत पंक्तियाँ हैं। धन्यवाद इस शेर के लिए। मैं इसे Internet पर ढूँढ कर ज़रूर पढ़ूँगी।
मेरी कविता के पंक्तियों की यह सच्चाई तो मैंने अपनी ज़िंदगी से सीखी है।
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