ना छुपो अपने आप से,
ना दुनिया से
अपने आप की छुपाओ।
ना ढलो अपने को
बीते कल में…..
या किसी परिभाषा में।
ना रोज़ रोज़ बदलो,
रंग बदलती
दुनिया की तरह।
वरना तुम्हारी असली
मुस्कुराहटें कहीं खो जाएगी।
ना छुपो अपने आप से,
ना दुनिया से
अपने आप की छुपाओ।
ना ढलो अपने को
बीते कल में…..
या किसी परिभाषा में।
ना रोज़ रोज़ बदलो,
रंग बदलती
दुनिया की तरह।
वरना तुम्हारी असली
मुस्कुराहटें कहीं खो जाएगी।
कोई भी अपना असली चेहरा नहीं ढक सकता
दुनिया के सामने नहीं
आत्मा के आईने में नहीं
टांका
सभी करते
स्वयं
यदि कोई
उसकी स्मृति
अपने बुरे कामों से दमित
लेना
सपना
स्पीकिंग ट्यूब
वो आत्मा
अवलोकन हेतु
तो आपके पास विकल्प है
नहीं कि
बायां हाथ क्या चाहता है
दाहिने हाथ से
हर दिन बेहतर प्रयास करने के लिए
किसी को नहीं करना चाहिए
अपनी मुश्किलों के बारे में
मुस्कान के साथ उस पर ट्रिपिंग
रंग दुनिया को नहीं बदलते
वे स्पेक्ट्रम में एक प्राकृतिक तत्व हैं
सचमुच हर दिन हर चीज में
वास्तविक होना
एक आमंत्रण है
एक पूरा व्यक्ति
तनावग्रस्त और चुनौतीपूर्ण
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बिलकुल। कोई अपना असली चेहरा नहीं ढक सकता। धन्यवाद गम्मा।
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शायद आप ‘न ढालो अपने को’ कहना चाह रही हैं रेखा जी। बहरहाल मैं आपके भावों से सहमत हूँ।
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हाँ, मैंने भी ध्यान नहीं दिया था। शुक्रिया , भूल सुधार के लिए और आपने विचार व्यक्त करने के लिए।
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