चेहरे पर ना जाओ,
चेहरे की मुस्कान पर ना जाओ।
यह कुछ बताती है,
पर बहुत कुछ है छुपाती।
बाँसुरी की मीठी तान
उसके अंदर के ख़ालीपन….
शून्यता और रिक्तता के दर्द से है बहती।
आँखों की हँसी पर ना जाओ।
शुष्क नदी देखी है कभी?
गौर से देखो तब नज़र आएगी नमी।
ऊपर से सूखी निर्झरिणी फल्गु के
रेत के नीचे भी है बहती एक नदी।
पूरे चाँद के रात की
बिखरी चाँदनी पर ना जाओ।
मिला है उसे यह ज्योत्सना,
चाँद के अमावस से पूनम तक के
अधूरे-पूरे होने के सफ़र से।
दमकते चेहरे पर ना जाओ।
रौशन आफ़ताब से पूछो
दमकने और उजाला फैलाने की तपिश।
हर चेहरे के पीछे छुपे होतें हैं,
हज़ारों चेहरे।
पढ़ सको तो पढ़ो।
काँपते-लरजते होंठों की मुस्कुराहट पर ना जाओ
कि………
रौशन रहते हैं समाधि और मज़ार भी चरागों से।
किवदन्तियाँ / पौराणिक कहानी- फल्गु नदी गया, बिहार में है। यह ऊपर से सूखी दिखती है। इसके रेत को हटाने से जल मिलता है। कहते है कि राम और सीता यहाँ राजा दशरथ का पिंडदान करने गए। राम समय पर नही आ सके। अतः ब्राह्मण के कहने पर सीता जी ने पिंडदान सम्पन्न कर दिया। राम के आने पर, उनके क्रोध से बचने के लिए फल्गु नदी ने झूठ कहा कि माता सीता ने पिंडदान नहीं किया है। माता सीता ने आक्रोशित होकर फल्गु नदी को अततः सलिला ( रेत के नीचे बहाने का) होने का श्राप दे दिया.
Wow.. loved the poem and the information you mentioned here about river phalgu
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Thanks a lot Vartika.
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Wow loved the way you used the words 😅😅
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Thank you Aparna 😊
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Beautiful poem and so much to say.
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Thanks dear.
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Very beautiful✨
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Thank you so much.
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That really an art, by worda and also by picture
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Thanks for appreciating it. 👍
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With pleasure dear
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Thanks
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