खोने का डर

इस दुनिया के मेले में,

लोगों को खोने से

परेशान न हो।

सब को खुश करने की

कोशिश में ,

रोज़ एक मौत ना मरो।

एक बात सीख लो!

खुद को खो कर खोजने और

संभलने में परेशानी बहुत है।

13 thoughts on “खोने का डर

  1. सबको ख़ुश करने की कोशिश करने वाला इंसान वाक़ई रोज़ एक नई मौत मरता है रेखा जी। मैं आपकी बात से सहमत हूँ कि खुद को खो कर खोजने और संभलने में परेशानी बहुत है। लेकिन यह सबक वक़्त रहते सीख लिया जाए तो ही बेहतर है वरना . . .।

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    1. जितेंद्र जी, मै people pleaser हीं रही हूँ पूरी ज़िंदगी। हर दिन अपनी खवाहिशों को दरकिनार किया । अब जा कर सबक़ लिया है। लेकिन पूरी तरह सीखने में अभी भी वक्त लगेगा।

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  2. बहुत ही यथार्त्वादी एवं कटु सच को उजागर करती कविता !शानदार !मैं जीतेन्द्रजी के विचारों का अनुमोदन करता हूँ !धन्यवाद

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    1. शुक्रिया धीरेंद्र!
      यह कविता दरअसल मेरे दिल की बातें हैं। ज़िंदगी वह गुरु है जो तब तक सबक़ देती रहती है, जब तक हम सीख नहीं जातें हैं।

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      1. आशा करता हूँ ज़िंदगी के सबक़ आप जल्द साकार कर लें और अपनी ज़िंदगी ख़ुशी और सुकून से जिएँ,मेरी शुभकामना आपके साथ😊

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      2. आभार धीरेंद्र! ज़िंदगी के सबक़ कभी ख़त्म नहीं होते 😊। सीखना चलता रहता है।
        आपकी शुभकामनाओं के लिए शुक्रिया। आपको भी शुभकामनाएँ।

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  3. जीवन हमेशा अपनी कठिनाइयों और चुनौतियों के साथ होता है। इसे कठिन मत बनाओ। जीवन को सरल रखें।

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