चढ़ते सूरज के कई हैं उपासक,
पर वह है डूबता अकेला।
जलते शोले सा तपता आफ़ताब हर रोज़ डूबता है
फिर लौट आने को।
इक रोज़ आफ़ताब से पूछा –
रोज़ डूबते हो ,
फिर अगले रोज़
क्यों निकल आते हो?
कहा आफ़ताब ने –
इस इंतज़ार में,
कभी तो कोई डूबने से
बचाने आएगा।
विशेष रूप से पुरुष
पूजा घुटने
उगते सूरज से पहले
स्त्रीलिंग
औरत
दुर्व्यवहार किया जाता है
जीवित
चाँद के नीचे
सूरज और तारे
धरती माँ पर
नारी बन जाती है उसकी अविभाज्य मानवीय गरिमा
दबा दिया
पुरुषों द्वारा मारे गए
उपेक्षित
पुरुषों
दिव्य बच्चे का सपना
बच्चे के पास शक्ति होनी चाहिए
हमें हमारे पापों को क्षमा करने के लिए
हमें फिर से जीवित करने के लिए
महिला देती है
अपेक्षित बच्चा
कोर में एक हिस्सा
सर्वव्यापी आत्मा
उसके पूरे जीवन के लिए
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Dhanyvaad!
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वाह….बेहद उम्दा🌸
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धन्यवाद शैंकी!
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बहुत ही प्रेरणादायक पंक्तियाँ 💕
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