नाराज़ हूँ तुमसे !
पर आसरा भी तुमसे चाहिए!
वृंदावन और जमुना चाहिए।
माखन चाहिए और चाहिए,
धनवा से ली तुम्हारी,
बांसुरी की मधुर तान
होली में मिले हम तुम पहली बार…..
….गोकुल और बरसाना का वह फाग चाहिए।
फूलों से सजे तुम अौर मैं (राधा )
वह शरद पूर्णिमा की
रास चाहिये।
तुला दान के एक तुला पर बैठे तुम,
दूसरे पलड़े में हलके पङते हीरे जवाहरात के ढेर
से व्यथित मैया यशोदा।
ईश्वर को तौलने की कोशिश में लगे थे सब।
यह देख तुम्हारे चेहरे पर छा गई शरारती मुस्कान ।
वह नज़ारा चाहिये।
मैंने ..(राधा) हलके पङे तुला पर अपनी बेणी से निकाल एक फूल रखा
अौर वह झुक धरा से जा लगा
और तुम्हारा पलड़ा ऊपर आ गया।
स्नेह पुष्प से,
तुम्हे पाया जा सकता है।
यह बताता वह पल चाहिये।
मुझे छोड़ गये
नाराज़ हूँ तुमसे,
पर तुम्हारा हीं साथ चाहिए।
नाराज़ हूँ तुम से,
पर प्रेम भी तुम्हारा हीं चाहिए।

बहुत सुंदर
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धन्यवाद वर्तिका।
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मैं दुखी नहीं हूं
कि देवताओं
आत्मा के तल पर नहीं
घर और जीने पर हैं
वे भूत हैं
लोगों के लिए
वे लोग जो
ख़तरनाक
जाने के लिए रास्ता
अंडरवर्ल्ड में अकेले नहीं
मनुष्य के अंतरतम भाग में
जाने के लिए नहीं करना चाहते हैं
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Sundar lekhan ! 👌
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Dhanyvaad!!
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अद्भुत पंक्तियाँ…..ह्रदय को छुती पंक्तियाँ💕💕💕💕
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बहुत आभार !mm
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