फूलों की पंखुड़ियाँ!!!
अगर टूटने की चाहत नहीं,
तब किसी से
इतना जुटना नहीं कि
रिश्ते खंडित होते
स्वयं भी खंडित हो जाओ …..
झड़ते फूल की पंखुड़ियों
सा बिखर जाओ।
फूलों की पंखुड़ियाँ!!!
अगर टूटने की चाहत नहीं,
तब किसी से
इतना जुटना नहीं कि
रिश्ते खंडित होते
स्वयं भी खंडित हो जाओ …..
झड़ते फूल की पंखुड़ियों
सा बिखर जाओ।
बहुत सुंदर
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शुक्रिया वर्तिका!!!
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बीते दिनों
शरद ऋतु के पत्तों की तरह ट्रंक से गिर
अपने प्रकाश पर पकड़
तूफान में
हर रात एक सपने में
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Thank you 😊
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Beautifully explained! ❤️
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Thank you Anjali. 😊
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❤️
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