आपने अपने आप को आईने में देखा ज़िंदगी भर।
एक दिन ज़िंदगी के आईने में प्यार से मुस्कुरा कर निहारो अपने आप को।
अपने को दूसरों की नज़रों से नहीं, अपने मन की नज़रों से देखा। कहो, प्यार है आपको अपने आप से!
सिर्फ़ दूसरों को नहीं अपने आप को खुश करो।
रौशन हो जाएगी ज़िंदगी।
जी भर जी लो इन पलों को।
फिर नज़रें उठा कर देखो। जिसकी थी तलाश तुम्हें ज़िंदगी भर,
वह मंज़िल-ए-ज़िंदगी सामने है। जहाँ लिखा है सुकून-ए-ज़िंदगी – 0 किलोमीटर!
मैं देख रहा हु
मेरे बचपन से
आत्मा के आईने में
आत्मा सभी जीवन का निर्माता है
दुनिया
ब्रह्माण्ड
अन्य सभी लोगों
सूक्ष्म जगत के प्रकाश में
मेरे जन्म से मुझमें जाग्रत
मैं अंदर की दुनिया और बाहरी दुनिया के बीच हूं
घटना के नाटक में लेखक नहीं
मैं दिन के प्रकाश में हूँ
एक सपने के पीला प्रकाश में
दो दुनियाओं के बीच एक पथिक
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बहुत ख़ूबसूरत!! धन्यवाद गामा!
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वाह!!!!! बहुत ही खूबसूरत व
प्रेरक रचना 👏👏😊
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धन्यवाद अनिता!
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बहुत ही प्रेरणादायक💕
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धन्यवाद शैंकी।
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बहुत ही खुबसूरत ❤
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शुक्रिया।
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सुंदर अभिव्यक्ति ! शब्दजाल भी मुझे अच्छा लगा।
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Waah!
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Dhanyvaad Rupali.
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बहुत सुंदर और यथार्थ ।
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बहुत आभार!!!
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