ज़िंदगी के रंग- 218

ज़िंदगी के रंग – 217

ज़िंदगी के देखे कई रंग,

कई बसंत !

सतरंगी ज़िंदगी ने सिखाया बहुत कुछ।

कभी हँसाया कभी रुलाया।

आज जहाँ खड़े हैं,

आप सब के साथ ।

वह है उम्र किस्टलाइस्ड इंटेलिजेन्स का,

अनुभव और समझदारी की वह उम्र जहाँ बस चाहत है,

खुश रहने की!

खट्टी-मीठी ज़िंदगी की राहों को ख़ुशियों के साथ तय करने की।

अब दुनिया और काम में

वक्त के साथ छूटते, भूलते जा रहे अपनों के साथ

बैठ कर वक्त भूलने की चाहत है।

8 thoughts on “ज़िंदगी के रंग- 218

  1. अभी के लिए
    आध्यात्मिक के बाद से
    और सांसारिक शक्तिशाली लोग
    उनके लालच के साथ
    हमें रसातल को
    जीने का

    धरती माता का
    नेतृत्व करने के लिए

    हम आम लोग
    इस नाटक में
    प्रकृति के अत्यधिक दोहन से
    हर दिन सहयोग करें

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  2. चाहत तो यही होती है लेकिन जिसकी यह चाहत पूरी हो जाए (इस उम्र में ही सही), वह ख़ुशकिस्मत ही कहा जाएगा रेखा जी।

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    1. कुछ चाहतें शायद उम्र होने पर हीं पूरी होती हैं क्योंकि तब हीं इनकी अहमियत मालूम होतीं है।शुरू की ज़िंदगी तो काम, जिम्मदारियों और दुनिया के शोर शराबे में कटती है।
      मुझे तो अब यही महसूस होता है। 😊

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