विपत्ति में ही सच्चे साथी नज़र आते हैं | रामचरित मानस की इस चौपाई में भी यही कहा है ! आपने बात और भी आगे बढ़ा दी | नकली मित्रों का भी परिचय विपत्ति काल में साफ़ दिख जाता है !
देत लेत मन संक न धरई । बल अनुमान सदा हित कराई ॥
विपत्ति काल कर सतगुन नेहा। श्रुति का संत मित्र गुण एहा ॥
अजनबी नहीं थे उनसे जब वे मिलते थे आदाब से,
जानते थे उन चेहरे को जिस पर सजे नकाब थे,
सजते नित्य ख्वाबों का गुलशन कलतक,
आज वहां बवंडर ही बवंडर,
लहरें उठती बेहिसाब से,
मालुम था एकदिन ये पल जरूर आएगा,
ये जो अदब है कल बदल जाएगा|
विपत्ति में ही सच्चे साथी नज़र आते हैं | रामचरित मानस की इस चौपाई में भी यही कहा है ! आपने बात और भी आगे बढ़ा दी | नकली मित्रों का भी परिचय विपत्ति काल में साफ़ दिख जाता है !
देत लेत मन संक न धरई । बल अनुमान सदा हित कराई ॥
विपत्ति काल कर सतगुन नेहा। श्रुति का संत मित्र गुण एहा ॥
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मानस की सटीक व बिलकुल सही पंक्तियाँ आपने लिख दी हैं। क्या किया जाय? दुनिया ही कुछ ऐसी है।
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सुंदर संदेश देती हुई रचना 👏👏
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आभार अनिता!
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behtarin………
अजनबी नहीं थे उनसे जब वे मिलते थे आदाब से,
जानते थे उन चेहरे को जिस पर सजे नकाब थे,
सजते नित्य ख्वाबों का गुलशन कलतक,
आज वहां बवंडर ही बवंडर,
लहरें उठती बेहिसाब से,
मालुम था एकदिन ये पल जरूर आएगा,
ये जो अदब है कल बदल जाएगा|
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क्या बात है! बहुत ख़ूब!
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