मोम

मेरे अस्तित्व का, मेरे वजूद का सम्मान करो।

हर बार किसी के बनाए साँचें में ढल जाऊँ,

यह तब मुमकिन है, जब रज़ा हो मेरी।

यह मैं हूँ , जलती और गलती हुई मोम नहीं।

17 thoughts on “मोम

  1. इन दो पंक्तियों में आपने जो लिखा है वो हर एक नारी की कहानी है
    नतमस्तक हूँ आपकी,ये पढ़ के !

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    1. धन्यवाद रितु।
      ये पंक्तियाँ वास्तव में मैंने किसी को जवाब के तौर पर हीं लिखा है। नारी जीवन की यह बहुत बड़ी समस्या है कि ज़्यादातर लोग उसे अपने साँचे में ढालना चाहतें है। independent identity शायद हीं मिल पाती है।

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      1. Thanks dear. It’s working. But I couldn’t find comment box .

        Your poems are too good . I can sense some pain in them. Keep writing. Love and light.

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  2. मैं उसी सामान से बना हूँ
    अन्य सभी की तरह
    लोग भी

    मोमबत्ती मदद करता है
    रास्ता खोजने के लिए
    रात के सारे अँधेरे में

    आत्मा का प्रकाश
    सपने में रोशनी करता है
    उत्तर
    दर्द पर
    मेरी गलतियाँ

    और कोई नहीं
    वही है
    संरचना
    तथा
    आकार
    मेरे जैसा
    जब आत्मा
    हर इंसान में बोलता है
    मानो यह
    मेरी आत्मा के लिए यह
    होने वाला
    केवल मेरे
    मैं

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