हवा पानी

 

 

 

जब सुना था पानी बिकेगा बोतलों में।

सोंचा था कौन ख़रीदेगा ?

प्यास बुझाता दरिया का पानी,

 सांसे महकाती दरख़्तों से गुजरती हवा,

आज  बिक रहे हैं  करोड़ों-अरबों में।

पानी आज शर्म से पानी पानी है।

खामोशी में डूबे बयार की अब शर्माने की बारी है।

  बोतल में बंद हवा-पानी प्राण दायिनी बन गई है।

इनके गुलाम रूह अब आजादी पाएंगे कैसे?

 

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