धन्यवाद आपका।
आपने जो शब्द लिखें हैं , उन में सही है चंद्र बिंदु लगाना – “हूँ”
पर प्रिंटिंग की सुविधा के लिए बिंदु लगाने लगे- “ हूं”
अब तो दोनों हीं सही माना जाता है।
Nidheesh aapka amuman bilkul sahi hai. Chandra bindu “हूँ “ sahi prayog hai. Lekin aajkal suvidha ke khyaal se har bhasha me bahut se badlav aa rahe hai. Sirf bindu हूं ka upayog new normal hai Hindi bhasha me. Apne vichar batane ke liye aabhaar. 🙂
See Ashish, everyone understands this but they don’t accept.
मेरी एक समस्या है। मैं बहस से दूर भागती हूँ। लेकिन चुप रहने का मतलब यह नहीं कि शब्दों का इस्तेमाल किसी और तरीक़े से नहीं कर सकती हूँ। 😊
शायद आप जानते हो कि पूजा के दौरान यह संस्कृत वाक्य ईश्वर को आभार , कृपा या अनुग्रह व्यक्त करने के लिए बोला जाता है – त्वदीयं वस्तु गोविन्द: तुभ्यमेव समर्पये ।
इस से हीं मैंने गोविंद/ ईश्वर शब्द हटा कर लिखा है। शायद कोई accept करना सीख जाए। 😊
आपके विचारों के लिए आभार ।
बहुत सही बात कही है आपने रेखा जी । अब इस बात से संदर्भित है चाहे नहीं, एक शेर याद आ रहा है मुझे :
तुमने जो दिए ग़म, कोई ग़म नहीं
हमने किए सितम कुछ कम नहीं
अब किसी से क्या शिकवा, क्या गिला
ये तो है मोहब्बत का एक सिलसिला
बिलकुल सही शेर लिखा आपने। जितेंद्र जी जैसे जैसे ज़िंदगी आगे बढ़ती है, वैसे वैसे एक एहसास गहरी होती जाती है कि शिकवे शिकायतों के लिए यह ज़िंदगी बहुत छोटी है।
आप बहुत अच्छा लिखते हो। मैं 13 साल की हूँ और मुझे आपकी बातें बहुत अछी लगती हैं। and I can relate to this because of the posts of positive thinking and all, my mom always says so.
बहुत सुँदर ! क्या आप बता सकती हैं की हूं सही है या हूँ ? आजकल अखबारों में भी लूं ,वहां ,जांच शब्द का प्रयोग हो रहा है
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धन्यवाद आपका।
आपने जो शब्द लिखें हैं , उन में सही है चंद्र बिंदु लगाना – “हूँ”
पर प्रिंटिंग की सुविधा के लिए बिंदु लगाने लगे- “ हूं”
अब तो दोनों हीं सही माना जाता है।
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जी धन्यवाद
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Rekha se mei sehmat hoon. Vyaakaran anusaar abhi bhi “हूँ” hi sikhaya bhi jaata hein paathshaalao mein, ye mera anumaan hei.
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Nidheesh aapka amuman bilkul sahi hai. Chandra bindu “हूँ “ sahi prayog hai. Lekin aajkal suvidha ke khyaal se har bhasha me bahut se badlav aa rahe hai. Sirf bindu हूं ka upayog new normal hai Hindi bhasha me. Apne vichar batane ke liye aabhaar. 🙂
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वाह!👏👏
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शुक्रिया अनिता 😊
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यह जीवन के अनुभवों की एक छोटी सी अभिव्यक्ति है। इसलिए तुम्हें पसंद आई।
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सच कहा है आपने,रेखा दीदी 🙏🏼😊
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😊
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Hope people should have understood this truth before running in the race… Bahut hi sundar… 🙂
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See Ashish, everyone understands this but they don’t accept.
मेरी एक समस्या है। मैं बहस से दूर भागती हूँ। लेकिन चुप रहने का मतलब यह नहीं कि शब्दों का इस्तेमाल किसी और तरीक़े से नहीं कर सकती हूँ। 😊
शायद आप जानते हो कि पूजा के दौरान यह संस्कृत वाक्य ईश्वर को आभार , कृपा या अनुग्रह व्यक्त करने के लिए बोला जाता है – त्वदीयं वस्तु गोविन्द: तुभ्यमेव समर्पये ।
इस से हीं मैंने गोविंद/ ईश्वर शब्द हटा कर लिखा है। शायद कोई accept करना सीख जाए। 😊
आपके विचारों के लिए आभार ।
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Yes, people are reluctant to accept this as most people are unable to digest the truth…
Apki rachnayen padh kar acha lagta qki isme kuch na kuch seekh rehti hai… My pleasure always… 🙂
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thanks a lot Ashish. it means a lot. 🙂
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Bhot sundar likha hai rekhaji💯💯
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Shukriya Saurabh.
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बहुत सही बात कही है आपने रेखा जी । अब इस बात से संदर्भित है चाहे नहीं, एक शेर याद आ रहा है मुझे :
तुमने जो दिए ग़म, कोई ग़म नहीं
हमने किए सितम कुछ कम नहीं
अब किसी से क्या शिकवा, क्या गिला
ये तो है मोहब्बत का एक सिलसिला
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बिलकुल सही शेर लिखा आपने। जितेंद्र जी जैसे जैसे ज़िंदगी आगे बढ़ती है, वैसे वैसे एक एहसास गहरी होती जाती है कि शिकवे शिकायतों के लिए यह ज़िंदगी बहुत छोटी है।
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मैं क्या नहीं कर सकता हूँ ?
मन में है दृढ़ विश्वास
मैं सब कुछ कर सकता हूँ
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बिलकुल। 👌
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रेखा जी,
आप सहाय हो गईं तो सब कुछ संभव है
🙏
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आभार आपका।
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Congratulations. Beautifully written.
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Thanks 😊 Sanchita.
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आप बहुत अच्छा लिखते हो। मैं 13 साल की हूँ और मुझे आपकी बातें बहुत अछी लगती हैं। and I can relate to this because of the posts of positive thinking and all, my mom always says so.
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