जीवन एक यात्रा है, हम सब मुसाफिर हैं।
चलते जाना है।
किसकी मंजिल मालूम नहीं कहां है।
मिलना एक इत्तेफाक है।
जाने जिंदगी के किस मोड़ पर कब कौन मिल जाए
और कब कहां बिछड़ जाए।
ना जाने कब कोई सफर अधूरा छोड़ चला जाए।
इस धूप- छाँव से सफर में
जब मरहम लगाने वाला अपना सा कोई मिल जाता है।
तब दोस्तों का एक कारवां बन जाता है।
कुछ लोगों से मिलकर लगता है,
जैसे वे जाने पहचाने हैं।
जिंदगी का सफर है इस में चलते जाना।
मिलना बिछड़ना तो लगा ही रहेगा।
जीवन एक यात्रा है, हम सब मुसाफिर हैं।
बस चलते जाना है।
यह कविता आदरणीय मनोरमा जी अौर अनिल जी को समर्पित है. जो किसी कारणवश दूसरे शहर में शिफ्ट हो रहे हैं.
This poem is dedicated to respected Anil ji and Manorama ji on their farewell.
रेखा दीदी आपकी रचना भावपूर्ण है,
अपने जीवन में मैं भी कई बार
इन परिस्थितियों से गुजर चुकी हूँ👌🏼👌🏼😊
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बहुत आभार अनिता। यह कविता मैंने जल्दीबाज़ी में पूरी की है। मैं अपनी अभिव्यक्ति से पूरी तरह से संतुष्ट नहीं थी। ऐसे में तुम्हारी प्रशंसा से हौसला मिला।
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मेरा अनुभव है कि जब रचनाएँ दिल से बनती है तो वहाँ शब्दों के संयोजन में फेरबदल की आवश्यकता ना के बराबर होती है, वह रचनाएँ ज्यादा भावपूर्ण व दिल के करीब होती है ओर पाठक स्वयं को उस स्थिति से जोड़ लेता है ।
आपका स्वागत है 🙏🏼🤗
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इतने प्यार भरे जवाब के लिए बहुत आभार अनिता ।
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🙏🏼😊
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अनिता दीदी बहुत सही कह रही है 🤗
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धन्यवाद शैंकी 😊
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धन्यवाद आशीष भाई 🙏🏼
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ज़िन्दगी का कारवां-ए-अमन यूंही चलता रहे
लोग मिलते जाएं कारवां-ए-अमन बनता जाए।🙏🙏❤️❤️❤️❤️ बहुत अच्छी रचना है 🙏
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Bahut sundar… heart touching poem… 🙂
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Thanks Ashish . 😊
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हाँ रेखा जी । सच ही है । आदमी मुसाफ़िर है; आता है, जाता है; आते-जाते रस्ते में यादें छोड़ जाता है ।
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धन्यवाद जितेंद्र जी।
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