हाँ रेखा जी । आँखों की बाबत अपने जो कहा, ठीक कहा । आपकी पोस्ट पढ़कर मुझे फ़िल्म पुरानी फ़िल्म ‘आँखें’ भी याद आई और उसकी यह कालजयी ग़ज़ल भी –
हर तरह के जज़्बात का ऐलान हैं आँखें
शबनम कभी शोला कभी तूफ़ान हैं आँखें
क्या बात ।। क्या बात।
आँखें दो मगर वे एक ही मुकाम देखे,
कभी ना हमने उनमें विवाद देखे,
खुशियों में मुस्कुराते दोनों,
और गम में
दोनों के बुरे हाल देखे,
वे देख ना सके एक दूजे को कभी,
मगर दोनों में गजब का प्यार देखे।
बहुत खूब।
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आभार पंकज !
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वाह!👏👏
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शुक्रिया अनिता!
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Wonderful post
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Thanks Prakaash !
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हाँ रेखा जी । आँखों की बाबत अपने जो कहा, ठीक कहा । आपकी पोस्ट पढ़कर मुझे फ़िल्म पुरानी फ़िल्म ‘आँखें’ भी याद आई और उसकी यह कालजयी ग़ज़ल भी –
हर तरह के जज़्बात का ऐलान हैं आँखें
शबनम कभी शोला कभी तूफ़ान हैं आँखें
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धन्यवाद जितेंद्र जी. यह ख़ूबसूरत ग़ज़ल है. आँखें तो आइना हैं. विडम्बना है आपस में मिलती नहीं कभी।
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Beautiful 🥰
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Thanks 😊
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wah… kya baat hai… bahut hi behatareen… excellent work… 🙂
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Thanks a lot Ashish!
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क्या बात ।। क्या बात।
आँखें दो मगर वे एक ही मुकाम देखे,
कभी ना हमने उनमें विवाद देखे,
खुशियों में मुस्कुराते दोनों,
और गम में
दोनों के बुरे हाल देखे,
वे देख ना सके एक दूजे को कभी,
मगर दोनों में गजब का प्यार देखे।
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बिलकुल सही! इन सुंदर पंक्तियों के लिए आभार मधुसूदन।
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