आँखें

दो आँखों का रिश्ता-
बेहद अज़ीब है।
दोनों करीब है।
ये रोती साथ हैं।
 हँसती भी साथ-साथ हैं।
किसी से  नफरत हो या मुहब्बत,
एक साथ करतीं हैं।
पर इनका ना कभी है सामना ना मुलाकातें।
एक दूसरे से अजनबी, नावाकिफ, अपरिचित।
नज़रों से नज़ारा  देखतीं हैं ये एक साथ।
सारा जहाँ देखती हैं साथ।
पर ना देखा कभी एक दूसरे को।
कभी सामना हुआ भी तब,
तैरते अक्स आईने में दिख रहें हों जब।

14 thoughts on “आँखें

  1. हाँ रेखा जी । आँखों की बाबत अपने जो कहा, ठीक कहा । आपकी पोस्ट पढ़कर मुझे फ़िल्म पुरानी फ़िल्म ‘आँखें’ भी याद आई और उसकी यह कालजयी ग़ज़ल भी –
    हर तरह के जज़्बात का ऐलान हैं आँखें
    शबनम कभी शोला कभी तूफ़ान हैं आँखें

    Liked by 3 people

    1. धन्यवाद जितेंद्र जी. यह ख़ूबसूरत ग़ज़ल है. आँखें तो आइना हैं. विडम्बना है आपस में मिलती नहीं कभी।

      Liked by 1 person

  2. क्या बात ।। क्या बात।
    आँखें दो मगर वे एक ही मुकाम देखे,
    कभी ना हमने उनमें विवाद देखे,
    खुशियों में मुस्कुराते दोनों,
    और गम में
    दोनों के बुरे हाल देखे,
    वे देख ना सके एक दूजे को कभी,
    मगर दोनों में गजब का प्यार देखे।

    Liked by 2 people

Leave a comment