मेरी आवाज़ सुनो !

क्यों मेरे लिए दिन बनाने की ज़रूरत पड़ी? हमें नहीं चाहिए लड़कियों का दिन! बस मेरी आवाज़ सुनो और हमें बराबर समझो, अच्छा भविष्य चाहिए हमें भी. ज़्यादा तो नहीं, बस इतनी सी चाहत है हमारी.

8 thoughts on “मेरी आवाज़ सुनो !

  1. सॉरी I am late

    बोल रही एक नादान वो
    कहते बालिका उसे यहा
    मार दो मुझको पैदा होते
    ना जन्म मुझको दो यहा।।

    कितनी आंखों से बचूँगी
    हर आंख घूरती हैं मुझे
    बचपन से म्रत्यु तक
    कितना मारते हैं मुझे।।

    पल पल मरती आज धरा
    मारे बचपन मे मुझे
    भरी जवानी जला देते
    कितना प्रताड़ित करें मुझे।।

    करते खाना पूर्ति सब
    कोई दर्द समझता नही
    बालिका दिवस मनाती दुनिया
    पर बालिका की है आवाज यही।।

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    1. इस ख़ूबसूरत कविता के रूप में जवाब देने के लिए आभार. मै आपके ब्लॉग पर नहीं जा सकी. मुझे यह उत्तर मिला –

      amarkhaniya.wordpress.com doesn’t exist

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  2. नेट प्रॉब्लम होगा
    हमे भी कभी कभी यही दिखता हैं
    खेर आपने कोशिश की यही बहुत है
    हमारे लिए
    आप बहुत अच्छा लिखते है

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    1. ठीक है. मैं फिर कोशिश करूँगी. आपके पोस्ट बहुत दिलचस्प तहाते है. प्रशंसा के लिए आपका बहुत धन्यवाद !

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