टूट कर गिरे-बिखरे कुछ लम्हे थे,
नज़रों के सामने।
जैसे हवा के झोंके से धरा पर बिखर अाईं,
फूलों की पंखुड़ियों।
कुछ भूले-बिसरे नज़ारें और कुछ यादें ,
जैसे कल की बातें हो।
आज सारे पल,
अौर सारी बीतीं घड़ियाँ पुरानी अौर अनजानी लगीं।
ऐसा दस्तूर क्यों बनाया है ऊपर वाले ने?
बेहद उम्दा पंक्तियाँ है🌺😊
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धन्यवाद शैंकी.
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