राह के पत्थरों के ठोकरों ने सिखाया,
राह-ए-ज़िंदगी पर चलना।
बुतों का इबादत किया हर दम।
फिर क्यों फेंक दें इन पाषणों को? ,
सबक तो इन्हों ने भी दिये कई बार।
राह के पत्थरों के ठोकरों ने सिखाया,
राह-ए-ज़िंदगी पर चलना।
बुतों का इबादत किया हर दम।
फिर क्यों फेंक दें इन पाषणों को? ,
सबक तो इन्हों ने भी दिये कई बार।
वाह सराहनीय👏
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आभार साधक !
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सच कहा है 👍आपने रेखा दी बहुत खूब 👏👏
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शुक्रिया अनिता !
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You have a great blog, congratulations 🌹I would like to invite you to follow my blog to, thank you so much and I wish you much success 🤗
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Thanks dear, I am already following your blog. I loved your bog. Happy blogging!!
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Oh I am so sorry, I love your blog to, thank you so much and I apologize again 😊🌹🌹🌹🤗
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No need to apologise dear! It’s ok . 😊
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I wish a lovely week and thank you so much for your kindness 🌹🤗
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Thanks 😊 a lot. Stay happy, healthy and safe!
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🌻🤩🌹😘😘
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😊😘
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बहुत ख़ूब👌
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शुक्रिया ज़ोया!
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बहुत ही अच्छी बात कही है रेखा जी आपने । इसे पढ़कर मुझे एक बरसों पुरानी बहुत छोटी-सी नज़्म याद हो आई (रचयित्री का नाम था- शशि गंदोत्रा) :
रास्ते के पत्थर से पूछा मैंने – ‘तेरी औक़ात क्या है ?’
कहा मुसकराकर उसने – ‘तुमसे बेहतर
जाने वालों की निगाह कुछ पल तो ठहरती है मुझ पर’
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वाह! बहुत खूब।
सही कही है शशि जी ने।
इस नज़्म के लिये आपको बहुत आभार।
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Woww… very heart touching lines…
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Thanks for reading!
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It is my pleasure dear ❤️
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🙂
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