राह के पत्थर

राह के पत्थरों के ठोकरों ने सिखाया,

राह-ए-ज़िंदगी पर चलना।

बुतों का इबादत किया हर दम।

फिर क्यों  फेंक दें इन पाषणों को? ,

सबक तो इन्हों ने  भी दिये कई  बार।

 

 

20 thoughts on “राह के पत्थर

  1. बहुत ही अच्छी बात कही है रेखा जी आपने । इसे पढ़कर मुझे एक बरसों पुरानी बहुत छोटी-सी नज़्म याद हो आई (रचयित्री का नाम था- शशि गंदोत्रा) :

    रास्ते के पत्थर से पूछा मैंने – ‘तेरी औक़ात क्या है ?’
    कहा मुसकराकर उसने – ‘तुमसे बेहतर
    जाने वालों की निगाह कुछ पल तो ठहरती है मुझ पर’

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