मुरली प्यारी है या मोर मुकुट?

The REKHA SAHAY Corner!

विष्णु के अष्टम अवतार, 

देवकी के आठवें पुत्र,

अष्ट पत्नियाँरुक्मणि, जाम्बवन्ती, सत्यभामा,

कालिन्दी, मित्रबिन्दा, सत्या, भद्राऔरलक्ष्मण को

राधा को, मीरा को, गोपियों को, 

 कान्हा क्यों सभी को अच्छे लगते हैं ?

  मुरली प्यारी है या मोर मुकुट? या स्वंय केशव?

कोई नहीं जान पाया…..

बस इतना हीं काफी है – वे अच्छे लगतें हैं।

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13 thoughts on “मुरली प्यारी है या मोर मुकुट?

  1. कान्हा प्रेम का मूर्त रूप है- पुत्र ऐसा कि हज़ारों वर्ष बाद भी हर माँ अपने बेटे को कान्हा रूप में देखती है, प्रेमी ऐसा जिसने गोपियों और राधा-कृष्ण के प्रेम को परम प्रेम की परिभाषा बना दिया- जिसमें कोई सामाजिक सीमा नहीं, जो आत्मा और परमात्मा के बंधन सा पवित्र है। मोरमुकुट, पीताम्बर और वैजयन्ती माला से शोभित केशव की छवि अलौकिक और उनकी मुरली की तान भुवन मोहिनी है। ऐसे कोमलगात यदुवंशी कृष्ण प्रेमी ही नहीं, जननायक, आदर्श मित्त्र, कुशल योद्धा, शासक, कूटनीतिज्ञ व कर्मयोगी भी हैं- हम सब का आदि और अंत भी वही हैं और इसलिए केशव हर रूप में सबको प्यारे हैं।

    कान्हा मानव रूप में देवत्व प्रतिरूप है, जो हम सब में है पर हम उन्हें देख नहीं पाते, मृग की तरह कस्तूरी की खोज में जीवन भर भटकते रहते हैं।

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  2. कान्हा प्रेम का मूर्त रूप है- पुत्र ऐसा कि हज़ारों वर्ष बाद भी हर माँ अपने बेटे को कान्हा रूप में देखती है, प्रेमी ऐसा जिसने गोपियों और राधा-कृष्ण के प्रेम को परम प्रेम की परिभाषा बना दिया- जिसमें कोई सामाजिक सीमा नहीं, जो आत्मा और परमात्मा के बंधन सा पवित्र है। मोरमुकुट, पीताम्बर और वैजयन्ती माला से शोभित केशव की छवि अलौकिक और उनकी मुरली की तान भुवन मोहिनी है। ऐसे कोमलगात यदुवंशी कृष्ण प्रेमी ही नहीं, जननायक, आदर्श मित्त्र, कुशल योद्धा, शासक, कूटनीतिज्ञ व कर्मयोगी भी हैं- हम सब का आदि और अंत भी वही हैं और इसलिए केशव हर रूप में सबको प्यारे हैं।

    कान्हा मानव रूप में देवत्व प्रतिरूप है, जो हम सब में है पर हम उन्हें देख नहीं पाते, मृग की तरह कस्तूरी की खोज में जीवन भर भटकते रहते हैं।

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    1. लगता है आप भी मेरी तरह कृष्ण भक्त है. सच कहा आपने, कृष्ण हर रूप में पूज्यनिय है, वंदनिया है. बहुत आभार सुंदर शब्दों में अपने विचार प्रकट करने के लिए.

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  3. कान्हा प्रेम का मूर्त रूप है- पुत्र ऐसा कि हज़ारों वर्ष बाद भी हर माँ अपने बेटे को कान्हा रूप में देखती है, प्रेमी ऐसा जिसने गोपियों और राधा-कृष्ण के प्रेम को परम प्रेम की परिभाषा बना दिया- जिसमें कोई सामाजिक सीमा नहीं, जो आत्मा और परमात्मा के बंधन सा पवित्र है। मोरमुकुट, पीताम्बर और वैजयन्ती माला से शोभित केशव की छवि अलौकिक और उनकी मुरली की तान भुवन मोहिनी है। ऐसे कोमलगात यदुवंशी कृष्ण प्रेमी ही नहीं, जननायक, आदर्श मित्त्र, कुशल योद्धा, शासक, कूटनीतिज्ञ व कर्मयोगी भी हैं- हम सब का आदि और अंत भी वही हैं और इसलिए केशव हर रूप में सबको प्यारे हैं।

    कान्हा मानव रूप में देवत्व प्रतिरूप है, जो हम सब में है पर हम उन्हें देख नहीं पाते, मृग की तरह कस्तूरी की खोज में जीवन भर भटकते रहते हैं।

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