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किसी को जानना काफ़ी नहीं होता हैं.
जानना है सचमुच में,
तब अच्छाइयों और कमियों के साथ जानो.
जीवन के मोड़ और ऊतार चढ़ाव में पहचानों.
उसके सुख-दुख जानो।
वरना आईना
भी जानता-पहचानता है.
रोते देख रोता है
हँसते देख हँसता है.
पर रहता है दूर, दीवार पर हीं है.
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गुड maam, बहुत अच्छी कविता है
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आभार अरुण !!
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वाह बहुत खूब लिखा है 👌🏼😊
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आभार अनिता !!! 😊
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