ज़िंदगी के रंग – 212 July 26, 2020July 26, 2020 Rekha Sahay ज़िंदगी में लोंग आते हैं सबक़ बन कर। फ़र्क़ यह है कि किस का असर कैसा है? वे तराश कर जातें या तोड़ कर ? पर तय है एक बात , चोट करने वाले भी टूटा करते हैं। हथौडिया छेनियाँ भी टूटा करतीं है। Image – Aneesh Rate this:Share this:FacebookMorePinterestTumblrLinkedInPocketRedditTwitterTelegramSkypeLike this:Like Loading... Related
पत्थर तराश कर मूरत बना डालते छेनियाँ और हथौड़ियाँ, जब किसी कारीगर के हाथ आते हैं, ढाह देते हैं सैकड़ों वर्षों की यादों को सहेजे इमारतों को भी, जब किसी आक्रांता के हाथ आते हैं। वे धातु बिन हाड़ मांस के, तुम तो नही, ना ही हम बिन सांस के। LikeLiked by 2 people Reply
पत्थर तराश कर मूरत बना डालते
छेनियाँ और हथौड़ियाँ,
जब किसी कारीगर के हाथ आते हैं,
ढाह देते हैं सैकड़ों वर्षों की यादों को सहेजे इमारतों को भी,
जब किसी आक्रांता के हाथ आते हैं।
वे धातु बिन हाड़ मांस के,
तुम तो नही,
ना ही हम बिन सांस के।
LikeLiked by 2 people
बहुत ख़ूबसूरत पंक्तियाँ मधुसूदन!!! आपका आभार!
LikeLike
Bilkul satya kathan… 🙂
LikeLiked by 1 person
आभार अपने विचार बाँटने के लिए.
LikeLike
सत्य है😊😊😊
LikeLiked by 2 people
शुक्रिया शैंकी .
LikeLiked by 1 person