10 thoughts on “ख़्वाब में थोड़ी ज़िंदगी

  1. दिल को चीर देने वाला अशआर है यह रेखा जी । फ़िल्म ‘उमराव जान’ (१९८१) के लिए शहरयार साहब द्वारा लिखी गई ग़ज़ल ‘जुस्तजू जिसकी थी उसको तो न पाया हमने’ का एक शेर है : कब मिली थी, कहाँ बिछुड़ी थी, हमें याद नहीं; ज़िन्दगी तुझको तो बस ख़्वाब में देखा हमने ।

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