ख़्वाब में थोड़ी ज़िंदगी July 18, 2020 Rekha Sahay गर नींद आए तब सो लेते हैं हम। ख़्वाब में थोड़ी ज़िंदगी जी लेते हैं हम। Rate this:Share this:FacebookMorePinterestTumblrLinkedInPocketRedditTwitterTelegramLike Loading... Related
दिल को चीर देने वाला अशआर है यह रेखा जी । फ़िल्म ‘उमराव जान’ (१९८१) के लिए शहरयार साहब द्वारा लिखी गई ग़ज़ल ‘जुस्तजू जिसकी थी उसको तो न पाया हमने’ का एक शेर है : कब मिली थी, कहाँ बिछुड़ी थी, हमें याद नहीं; ज़िन्दगी तुझको तो बस ख़्वाब में देखा हमने । LikeLiked by 1 person Reply
Bhot khub rekha ji👏
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Shukriya Saurabh!!
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बहुत खूब 👌
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शुक्रिया अनुराग!!!
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Awesome 😍
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Thank you Monika.
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दिल को चीर देने वाला अशआर है यह रेखा जी । फ़िल्म ‘उमराव जान’ (१९८१) के लिए शहरयार साहब द्वारा लिखी गई ग़ज़ल ‘जुस्तजू जिसकी थी उसको तो न पाया हमने’ का एक शेर है : कब मिली थी, कहाँ बिछुड़ी थी, हमें याद नहीं; ज़िन्दगी तुझको तो बस ख़्वाब में देखा हमने ।
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शुक्रिया जितेंद्र जी.
उमराव जान का यह गीत मुझे बड़ा पसंद है.
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सच कहा आपने 👌
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शुक्रिया अनिता !!!
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