नकाब

People don’t  change, Sometimes their mask falls off.

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जानते थे उन्हें ज़माने से।

अचानक बदले रूख को देख कर लगा।

क्या लोग बदल जाते हैं?

ज़माने बदलने के साथ?

फिर  समझ आया,

यह तो नकाब था,

जो खिसक गया था चेहरे से । 

 

32 thoughts on “नकाब

  1. Hey dear!

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  2. वाह।
    जिसे असली समझ रहे थे
    वह नकली निकला,
    अभी परते खुलना शेष है,
    कैसे यकीन कर लें इन आँसुओं का,
    अभी रंग बदलना शेष है।

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    1. बिलकुल सही फरमाया आपने। जिंदगी में ऐसे लोग कभी ना कभी मिल हीं जातें हैं।

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      1. पढ़कर सच में दिल बागवान हो गया। मैं इसे अपने facebook page पर साझा करना चाहूंगा।

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  3. इस बात पर कई नए-पुराने फ़िल्मी गीत भी हैं और शायरी भी लेकिन मुझे कुछ-कुछ इसी संदर्भ में एक अलग-सा शेर भी याद आ गया है :

    लोग मतलब में दिवाने हो गए
    कुछ ज़ियादा ही सयाने हो गए
    हाल उनका हमसे अब क्या पूछिए
    उनको देखे तो ज़माने हो गए

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    1. आपने ठीक कहा, इस आशय की बातें अक्सर मिलती रहतीं हैं.
      ये पंक्तियाँ जीवन की कड़वी सच्चाई है. जिससे हम सबों का आमन-सामना होता रहता है.
      आपने बहुत अच्छा शेर शेयर किया है. इस में चंद शब्दों में दुनिया की सारी सच्चाई दिख रही है.

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    2. आपके लिखे रिव्यू को पढ़ने के बाद मैंने तीनों फ़िल्में देखीं. ‘ ‘ अनिता’ मैंने पहली बार देखी. अच्छी मूवी है.

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  4. मुझे ख़ुशी है रेखा जी कि आपको ये फ़िल्में पसंद आईं । ‘अनीता’ की कहानी कमज़ोर है लेकिन गीत-संगीत और साधना के व्यक्तित्व ने इस फ़िल्म को भी क्लासिक बना दिया है ।

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    1. दरअसल मैं मूवी रिव्यू आपके लिखे हीं पढ़तीं हूँ. इसलिए आप जिन फ़िल्मों के नाम लिखते है, समय मिलने पर देखने की कोशिश करतीं हूँ.
      वैसे मुझे suspense और mystery मूवी और कहानियाँ पसंद भी है.

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