जिंदगी के रंग -205

जीवन में खुश रहने और  सार्थकता ढूंढने में क्या अंतर हैं? 

क्या दोनों साथ-साथ चल सकतें हैं? 

अर्थपूर्णता…सार्थकता के खोज  में अतीत, वर्तमान और भविष्य शामिल होतें हैं।

इसके लिये सही-गलत सीखना पङता है

 खुशियों  के लिये कोई समय, सही-गलत,  कोई शर्त नही होती।

खुशियाँ अपने अंदर होतौं हैं, किसी से मांगनी नहीं पङती है।

सार्थकता जुड़ा है – कर्तव्य,  नैतिकता से।

सार्थकता और अर्थ  खोजने में कभी-कभी  खुशियाँ  पीछे छूट जाती है।

पर जीवन से संतुष्टि के लिये दोनों जरुरी हैं। 

 

 

 

 

14 thoughts on “जिंदगी के रंग -205

    1. सुझाव अच्छा है. पर यह तो बड़ा कठिन है. वे भगवान थे. हम सब सामान्य इंसान है.

      Like

      1. भगवान का मतलब होता कि भगवान की राह पर चलो …उनके आदर्शों पर चलो….मैं राम और कृष्णा में मानता उनके आदर्शों को मानता ….उनकी मूर्ति पूजा नही करता …

        भगवान आदर्श

        और

        भगवान बिज़नेस

        में अंतर दिखता मुझे🌸❤

        Liked by 1 person

      2. अगर भगवान के बताए राह और आदर्शों पर चल सकें तब बहुत अच्छी बात है.
        मूर्ति पूजन से आगे की पूजा है उनके आदर्शों पर चलना. इसलिए यह कठिन भी है.
        बहुत अच्छे विचार हैं तुम्हारे.

        Like

  1. बात बहुत गहरी है यह रेखा जी । इंसान को अपनी ख़ुशी को कभी नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए क्योंकि यह एक ठोस (और बड़ी तल्ख़) हक़ीक़त है कि दूसरों के ग़म बांटने से अपने ज़ख़्म नहीं भरते हैं ।

    Like

    1. आपकी बात अच्छी लगी – अपनी ख़ुशी को कभी नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए।
      लेकिन बहुत बार सही-गलत के उलझन में अपनी खुशियों को दरकिनार करना पङता है।

      Liked by 1 person

Leave a Reply

Please log in using one of these methods to post your comment:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s