दरअसल में मैं कुछ काम में लगा हुआ था, लेकिन मैंने वर्डप्रेस को बहुत विशेष रूप से आपके ब्लॉग को याद किया। मुझे उम्मीद है कि आप और आपका परिवार सुरक्षित और स्वस्थ होगा।
बात तो आपकी सही है रेखा जी कि मन का दर्पण सदा सच्चाई दिखाता है और कभी छल नहीं करता लेकिन दो किस्म के लोगों को अपने आपको भी छलना पड़ता है और मन का दर्पण जो दिखा रहा है, उसे अनदेखा करना पड़ता है – हमेशा तो उन्हें जो कामयाबी को ही सब कुछ मानकर उसके पीछे दौड़ते हैं और कभी-कभी उन्हें जो किसी को दिलोजान से प्यार करते हैं फिर चाहे उस प्यार का कोई सिला मिले या नहीं । एक बहुत पुराने गीत ‘हम प्यार में जलने वालों को चैन कहाँ, हाय, आराम कहाँ’ का एक अंतरा इस प्रकार है :
बहलाए जब दिल ना बहले तो ऐसे बहलाएं
ग़म ही तो है प्यार की दौलत, ये कहकर समझाएं
अपना मन छलने वालों को चैन कहाँ, हाय, आराम कहाँ
बेहदख़ूब👌 सच लिखा आपने
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आभार, पसंद करने के लिये।
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correctly said!
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thank you.
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बहुत खूब आपके विचार एेवरग्रीन है रेखा जी😀
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शुक्रिया सौरभ. बहुत दिनों बाद नज़र आए?
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दरअसल में मैं कुछ काम में लगा हुआ था, लेकिन मैंने वर्डप्रेस को बहुत विशेष रूप से आपके ब्लॉग को याद किया। मुझे उम्मीद है कि आप और आपका परिवार सुरक्षित और स्वस्थ होगा।
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Ok, हाँ सब ठीक है. आशा है तुम भी सपरिवार सकुशल होगे. Stay happy, healthy and safe!
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रास्ता श्मशान को जा रही थी और मैं उसी रास्ते पर चलता जा रहा था ये सोचकर कि शायद शहर को जाट है ये राह।
अब दोष रास्ते का कैसे?
बेचारा दर्पण!
हम ना आंतरिक दर्पण समझ पाए
और ना ही
काँच का दर्पण।
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वाह!! कितना सटीक उदाहरण दिया है दर्पण के भ्रम का.
हम सब वास्तव में समझदार हो जाएँगे, जिस दिन हम दोनों दर्पणों को समझने लगेंगे.
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फिर कोई द्वंद्व नही होगा शायद।
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बिलकुल सही. शुक्रिया !!!
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Very well said..you are evergreen rekhaji👏👏
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Thank you Saurabh. Welcome back!!!
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बात तो आपकी सही है रेखा जी कि मन का दर्पण सदा सच्चाई दिखाता है और कभी छल नहीं करता लेकिन दो किस्म के लोगों को अपने आपको भी छलना पड़ता है और मन का दर्पण जो दिखा रहा है, उसे अनदेखा करना पड़ता है – हमेशा तो उन्हें जो कामयाबी को ही सब कुछ मानकर उसके पीछे दौड़ते हैं और कभी-कभी उन्हें जो किसी को दिलोजान से प्यार करते हैं फिर चाहे उस प्यार का कोई सिला मिले या नहीं । एक बहुत पुराने गीत ‘हम प्यार में जलने वालों को चैन कहाँ, हाय, आराम कहाँ’ का एक अंतरा इस प्रकार है :
बहलाए जब दिल ना बहले तो ऐसे बहलाएं
ग़म ही तो है प्यार की दौलत, ये कहकर समझाएं
अपना मन छलने वालों को चैन कहाँ, हाय, आराम कहाँ
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हाँ, अक्सर हम सभी सच जानते हुए भी, कभी ना कभी मन के दर्पण को छलते हैं.
यह गीत ख़ूबसूरत है पर दर्द है इसमें.
आपका आभार जितेंद्र जी.
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ना ना….हमारी नज़रे गलत हो सकती है पर दर्पण नहीं। वो कहते है न “वो थे न मुझसे दूर न मैं उनसे दूर था । आता न था नजर तो ये नजर का कसूर था ।”
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बिलकुल, सुंदर पंक्तियाँ शैंकी।
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शैंकी, तुम राँची से हो क्या?
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Yes ma’am✌
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जान कर अच्छा लगा. मैं भी राँची / पटना से हूँ.
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Ranchi ya fir Patna??? Asmanjs mei na daleye ma’am😄
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राँची से मेरे husband और मैं पटना से हूँ.
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Waah bhaut khushi hui jaan kr ma’am. Madhusudan sir v Ranchi se hi hai. Ab to aapko padhne mei or v mazaa aayega😁😁😁
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अच्छा, मधुसूदन जी भी राँची से है? ख़ुशी की बात है.
तुम क्या करते हो? Student?
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हाँ वो भी मोराबादी राँची से है। और है मैं नौकरी कि तलाश में हूँ अभी। लेकिन कोरोना ने घर पर ही रखा है।😛
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अच्छा है तुमने बताया. अभी घर में हीं रहो. Stay safe!! 😊
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Haa ma’am abhi bahut jayada ho gya hai corona.
Or aap kaha hai abhi Patna mei n??
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हाँ, हर जगह यही हाल है। मैं पुणे में रहती हूँ।
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मतलब आपकी मम्मी का घर पटना में है😛
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हाँ 😊
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