आदत बन रहीं हैं दूरियाँ और दीवारें.
तमाम जगहों पर पसरा है सन्नाटा.
कमरों में क़ैद है ज़िंदगी.
किसी दरवाजे, दीवारों की दरारों से
कभी-कभी रिस आतीं हैं कुछ हँसी….कुछ आवाज़ें.
एक दूसरे का हाथ थामे खड़ी ये चार दीवारें,
थाम लेतीं हैं हमें भी.
इनसे गुफ़्तुगू करना सुकून देता है.
किसी दरवाजे, दीवारों की दरारों से
कभी-कभी रिस आतीं हैं कुछ हँसी….कुछ आवाज़ें.
Bahut he kamaal ki lines hai.
H8gh level thinking.
⭐⭐⭐⭐⭐
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पसंद करने के लिए आभार!!!
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🤩
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Thank you.
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