श्रम के सैनिक निकल पड़े पैदल, बिना भय के बस एक आस के सहारे – घर पहुँचने के सपने के साथ. ना भोजन, ना पानी, सर पर चिलचिलाती धूप और रात में खुला आसमान और नभ से निहारता चाँद. पर उन अनाम मज़दूरों का क्या जो किसी दुर्घटना के शिकार हो गए. ट्रेन की पटरी पर, रास्ते की गाड़ियों के नीचे? या थकान ने जिनकी साँसें छीन लीं. जो कभी घर नहीं पहुँचें. बस समाचारों में गिनती बन कर रह गए.
NEWS ARTICLES



haardik.🥺
What time is it over there?
LikeLike
Its 2 PM here in India.
LikeLike
At the time of your post it was 11:41 a.m
LikeLike
yes, i know there is a time gap of 2-2:30 hours.
LikeLike
न जाने कितने छाती पीट रहे होंगे
और कितने
अब भी आने का इंतजार,
आंगन बुहार रहे होंगे,
बिस्तर सजा रहे होंगे,
वर्षों बाद कोई घर आ रहा था,
बाते नहीं हो पाई थी,
बैटरी डाउन थी
मोबाइल की,
उसे क्या मालूम कि
जिंदगी की बैटरी डाउन हो गई है,
जो अब कभी रिचार्ज नहीं होगा।
LikeLiked by 1 person
यह स्थिती बङी दुःखद है। सोंच कर हीं दिल ङूबने लगता है। ना जाने इन लोग ने क्या-क्या तकलीफें देखीं होंगी। आभार इन मार्मिक पंक्तियों के लिये।
LikeLike
स्वागत आपका।
LikeLiked by 1 person
😑😑😞 दुखद
LikeLiked by 1 person
हाँ, बेहद कष्टदायक.
LikeLike