शिकवे April 30, 2020 Rekha Sahay शिकवे-शिकायतों के लिए यह ज़िंदगी छोटी है, पर क्या करें, जो कोई रुका नहीं सुनने के लिये……. वैसे, ज़िंदगी में लुत्फ़ इन शिकायतों का भी है – चंद क़तरे अश्क़, अधूरी आरज़ू -हसरतें….. और ना- उम्मीद शिकायतें…. गिले तो होंगे हीं. Rate this:Share this:FacebookMorePinterestTumblrLinkedInPocketRedditTwitterTelegramSkypeLike this:Like Loading... Related
बहुत अच्छी बात कही है रेखा जी आपने । इसी संदर्भ में मुझे एक शेर याद आ रहा है : तुमने जो दिए ग़म, कोई ग़म नहीं हमने किए सितम कुछ कम नहीं अब किसी से क्या शिकवा, क्या गिला ये तो है मोहब्बत का एक सिलसिला LikeLiked by 1 person Reply
लिखनेवाले ने लाजवाब लिखा है. शेर की ये पंक्तियाँ बड़ी सही हैं. इसे शेयर करने के लिए आपका बहुत आभार. LikeLiked by 1 person Reply
बहुत बढ़िया। चंद क़तरे अश्क़, अधूरी आरज़ू -हसरतें….. और ना- उम्मीद शिकायतें…. गिले तो होंगे हीं. LikeLiked by 1 person Reply
wonderfull lines written
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Thank you so much.
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बहुत अच्छी बात कही है रेखा जी आपने । इसी संदर्भ में मुझे एक शेर याद आ रहा है :
तुमने जो दिए ग़म, कोई ग़म नहीं
हमने किए सितम कुछ कम नहीं
अब किसी से क्या शिकवा, क्या गिला
ये तो है मोहब्बत का एक सिलसिला
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लिखनेवाले ने लाजवाब लिखा है. शेर की ये पंक्तियाँ बड़ी सही हैं. इसे शेयर करने के लिए आपका बहुत आभार.
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सही है💐😊
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शुक्रिया.
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बहुत बढ़िया।
चंद क़तरे अश्क़,
अधूरी आरज़ू -हसरतें…..
और ना- उम्मीद शिकायतें….
गिले तो होंगे हीं.
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आभार मधुसूदन!
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