टूट कर मुहब्बत करो
या मुहब्बत करके टूटो.
यादों और ख़्वाबों के बीच तकरार चलता रहेगा.
रात और दिन का क़रार बिखरता रहेगा.
कभी आँसू कभी मुस्कुराहट का बाज़ार सजता रहेगा.
यह शीशे… काँच की नगरी है.
टूटना – बिखरना, चुभना तो लगा हीं रहेगा.
टूट कर मुहब्बत करो
या मुहब्बत करके टूटो.
यादों और ख़्वाबों के बीच तकरार चलता रहेगा.
रात और दिन का क़रार बिखरता रहेगा.
कभी आँसू कभी मुस्कुराहट का बाज़ार सजता रहेगा.
यह शीशे… काँच की नगरी है.
टूटना – बिखरना, चुभना तो लगा हीं रहेगा.
बड़ी बड़ी सारगर्भित बात कही है रेखा जी आपने । जगजीत सिंह जी की गाई हुई एक बहुत अच्छी ग़ज़ल याद आ गई मुझे :
या तो मिट जाइए या मिटा दीजिए
कीजिए जब भी सौदा, खरा कीजिए
LikeLiked by 1 person
ग़ज़ल की उम्दा पंक्तियों के लिए बहुत आभार जितेंद्र जी. जीवन कुछ ऐसा हीं होता है.
LikeLiked by 1 person
यही तो ज़िंदगी है टूटना और बिखरना
LikeLiked by 2 people
टूटना, बिखेरना तो सबक़ है. फिर उन सब से मज़बूत हो कर निकलना हीं ज़िंदगी है.
LikeLiked by 1 person
बिलकुल सही😊😊
LikeLiked by 1 person
Nice poem, Rekha. Loved it.
LikeLiked by 1 person
Thank you 😊
LikeLiked by 1 person