अहले सुबह नींद खुली मीठी, गूँजती आवाज़ों से.
देखा बाहर परिंदों की सभा है.
शोर मचाते-बतियाते किसी गम्भीर मुद्दे पर, सभी चिंतित थे
– इन इंसानों को हुआ क्या है?
बड़े शांत हैं? नज़र भी नहीं आते?
कहीं यह तूफ़ान के पहले की शांति तो नहीं?
हाल में पिंजरे से आज़ाद हुए हरियल मिट्ठु तोते ने कहा –
ये सब अपने बनाए कंकरीट के पिंजरों में क़ैद है.
शायद हमारी बद्दुआओं का असर है.
बहुत सुंदर
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धन्यवाद पंकज.
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बहुत खूबसूरत।
बहुत रुलाया हर जीवों को हमने,
कोई हमें रुलाने आया है,
पिंजड़े में रखने का शौक था सबको,
मेरे घर को ही पिंजड़ा बनाया है,
जिसका दरवाजा खुला है
मगर निकलना मुश्किल,
अगर निकल गए
तो खुद को बचाना मुश्किल।
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कितनी ख़ूबसूरती से आपने कविता के प्रत्युत्तर में कविता रच दी है. आख़री की पंक्तियाँ महत्वपूर्ण और अर्थपूर्ण हैं. आपका बहुत आभार!
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बहुत रुलाया हर जीवों को हमने,
कोई हमें रुलाने आया है,
पिंजड़े में रखने का शौक था सबको,
मेरे घर को ही पिंजड़ा बनाया है,
जिसका दरवाजा खुला है
मगर निकलना मुश्किल,
अगर निकल गए
तो खुद को बचाना मुश्किल।
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बेहद सुंदर रचना. धन्यवाद आपका.
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धन्यवाद आपका।
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