जागता रहा चाँद सारी रात साथ हमारे.
पूछा हमने – सोने क्यों नहीं जाते?
कहा उसने- जल्दी हीं ढल जाऊँगा.
अभी तो साथ निभाने दो.
फिर सवाल किया चाँद ने –
क्या तपते, रौशन सूरज के साथ ऐसे नज़रें मिला सकोगी?
अपने दर्द-ए-दिल औ राज बाँट सकोगी?
आधा चाँद ने अपनी आधी औ तिरछी मुस्कान के साथ
शीतल चाँदनी छिटका कर कहा -फ़िक्र ना करो,
रात के हमराही हैं हमदोनों.
कितनों के….कितनी हीं जागती रातों का राज़दार हूँ मैं.
सच जैसा लगता है
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शुक्रिया .
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बहुत खूब
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आभार!
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हाँ चाँद हूँ मैं,
कितनों के….कितनी हीं जागती रातों का राज़दार हूँ मैं।
बहुत खूबसूरत।👌👌
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नींद ना आने पर चाँद से बातें करने का अपना लुत्फ़ है. शुक्रिया मधुसूदन.
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रचनाकार किसी से भी बातें कर लेता है। स्वागत आपका।
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सही कहा. धन्यवाद.
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