एक ख़्याल अक्सर आता है.
एक रहस्य जानने की हसरत होती है.
क्या सोंच कर ईश्वर ने मुझे इस आकार में ढाला होगा?
कुछ तो उसकी कामना होगी जो यह रूह दे डाला होगा.
क्यों इतने जतन से साँचे में मूर्ति सा गढ़ा होगा?
क्या व्यर्थ कर दिया जाए इसे दुनियावी उलझनों …खेलों में?
या ढूँढे इन गूढ़ प्रश्नों के उत्तरों को,
अस्तित्व के गलने पिघलने से पहले?

so nice
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Thank you
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Bahut khub…….Ishwar hamen banaakar nishchit hi pachhtaayaa hogaa……..
banaayaa to insaan ….magar shaitaan najar aayaa hoga.
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मुझे लगता है, हमें बना कर ईश्वर को अपनी रचना पर ख़ुशी हुई होगी. पर हम उस की अपक्षाओं पर खरे नहीं उतरते हैं, तब उसे दुःख होता होगा.
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बिल्कुल सही।कहने को हम वेदों के ज्ञाता मतलब ईश्वर तक पहुंचना जानते हैं मागत अफशोष अपने स्वयं तक नही पहुँच पाए। औरों का दर्द नही समझ पाए। अफशोष तो ईश्वर जरूर करता होगा हमें बनाकर।
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शुक्रिया.
हम छोटी से छोटी चीज़ तभी बनाते हैं जब उसका कुछ प्रयोजन हो, कोई मतलब हो. ईश्वर ने भी बिना सोंच समझे हमें नहीं बनाया होगा. अफ़सोस अपना मोल हम स्वयं हीं नहीं जानते ना जानने की कोशिश करते हैं.
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बिल्कुल सही।
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बहुत गुढ़ बात कही हैम
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शुक्रिया शिखा.
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Very nice write up
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Thank you Prakash.
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This is the link
http://scienceandinspiration.com/2020/01/05/role-of-mentor-in-achieving-goal-of-life/
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I loved the post Prakaash.
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