ज़िंदगी के रंग – 194

ज़िंदगी कट गई भागते दौड़ते.

थोड़ा रुककर कर,

ठहर कर देखा – चहचहातीं चिड़ियों को,

ठंड में रिमझिम बरसती बूँदे,

हवा में घुली गुलाबी ठण्ड……

खुशियाँ तो अपने आस-पास हीं बिखरीं हैं,

नज़रिया और महसूस करने के लिए फ़ुर्सत….

वक़्त चाहिए.

10 thoughts on “ज़िंदगी के रंग – 194

  1. खुशियाँ तो अपने आस हीं बिखरीं हैं, नज़रिया और महसूस करने के लिए फ़ुर्सत….वक़्त चाहिए.
    V simple and v informative

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