स्याह स्याही

अब अँधेरे से डर नहीं लगता.

अँधेरा हीं रुहानी लगता है.

स्याह स्याही, सफ़ेद पन्नों पर कई

कहानियाँ, कवितायें लिख जाती हैं.

वैसे हीं अँधेरे की रोशनाई में कितने

सितारे, ख़्वाब, अफ़साने दिख जाते हैं.

जिसमें कुछ अपना सा लगता है .

 

13 thoughts on “स्याह स्याही

  1. Reminds me of a few lines I wrote this Sunday only:
    अंतःप्रकाश बंद हो गया मुझे स्याह अंधेरों का  डराना
    जबसे अपने अंदर की रोशनी को पहचाना
    मैंने पाया,मैं तो जुगनू जैसा  ही हूँ रोशन
    पर नकारात्मकता  का करता नहीं पोषण
    इसीलिये औरों के अंदर ज्योति ही हूँ तलाशता
    उसी के उजाले में अपने अँधेरे और  हूँ घटाता
    -रविन्द्र कुमार करनानी

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    1. बेहद सुंदर पंक्तियाँ रविंद्र जी. सही कहा आपने. अँधेरे में हीं अपने अंदर की रोशनी नज़र आती है. बस उस उजाले को बढ़ाना है.
      बहुत आभार आपका.

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  2. अंतःप्रकाश 
    बंद हो गया मुझे स्याह अंधेरों का  डराना
    जबसे अपने अंदर की रोशनी को पहचाना
    मैंने पाया,मैं तो जुगनू जैसा  ही हूँ रोशन
    पर नकारात्मकता  का करता नहीं पोषण
    इसीलिये औरों के अंदर ज्योति ही हूँ तलाशता
    उसी के उजाले में अपने अँधेरे और  हूँ घटाता-रविन्द्र कुमार करनानी

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