स्याही से लिखते-लिखते ज़िंदगी की कहानी, बूँदें टपक कर कब स्याह कर गईं पन्ने, पता हीं नहीं चला. और अब रिक्त कलम से लिखने के लिए बचा हीं नहीं कुछ भी.

Picture courtesy Aneesh
स्याही से लिखते-लिखते ज़िंदगी की कहानी, बूँदें टपक कर कब स्याह कर गईं पन्ने, पता हीं नहीं चला. और अब रिक्त कलम से लिखने के लिए बचा हीं नहीं कुछ भी.
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Ink is important
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Thanks
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Bhut bhut bhut badya line ….. I love it
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Bahut shukriya.
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कलम को संभालने के चक्कर में पन्ने खराब हो गए जिंदगी भी कुछ इसी तरह है
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सही है.
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दिल को छूने वाले शब्द हैं आपके , ज़रूर अंतस से ही निकले होंगे |
अभी 27 नवम्बर को मेरे पिताजी बरसी थी | मैंने उन्हें बहुत ही छोटी उम्र में खोया था , वो पचपन के और मैं बाईस का था | उस दिन आपकी इन लाइनों जैसा ही कुछ मन में चल रहा था |
मैंने अपने ब्लॉग के लिए लिखीं थीं , पोस्ट नहीं कर पाया :
सामान्यतः जब मैं बिछड़े हुवे अपनों को याद करता हूँ उनकी मधुर स्मृतियाँ ही मन में लाता हूँ और ज्यादातर वो बीते मृदु क्षण एक मीठी मुस्कान ही दे जाते हैं | पर कभी ऐसा भी हो जाता है :
अपनों की यादें
अपनों की यादों को कलमबद्ध करने की मन में समाई
कुछ लाइनें ही लिख पाया कि स्मृतियों की सुनामी आई
काल की कालिमा सी छाई कागज पर शब्दों की स्याही
मेरे मन के अँधेरे सा स्याह नज़र आ रही थी मेरी लिखाई
जो श्वेत सी रेखाएँ नज़र आ रही हैं उस काले पन्ने पर
वो मेरी स्वेद और अश्रु बूंदों ने टपक कर है बनाई |
-रविन्द्र कुमार करनानी
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कभी कभी कुछ बातें पीछा नहीं छोड़ती. तब सबसे आसान लगता है उन्हें शब्दों में ढाल देना.
कई बार ऐसा भी होता है कि दिमाग़ से कुछ प्रेरक लिखना चाहतीं हूँ और दिल से कुछ और मायूसी भरी बातें लिख जातीं हूँ.
बहुत कम वयस में आपने अपने पिता को खो दिया. यह दुखद है. उन्हें श्रद्धा सुमन! आपकी कविता की पंक्तियों में दर्द है.
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Deep!
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Thank you Muntazir
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