साँस के साथ बुनी गई जो ज़िंदगी,
वह अस्तित्व खो गया क्षितिज के चक्रव्यूह में.
अब अक्सर क्षितिज के दर्पण में
किसी का चेहरा ढूँढते-ढूँढते रात हो जाती है.
और टिमटिमाते सितारों के साथ फिर वही खोज शुरू हो जाती है –
अपने सितारे की खोज!!!!
Image courtesy- Aneesh
Nice
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Thank you
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आपकी इन पंक्तियों को पढ़कर मुझे बरसों पहले पढ़ी हुई कुछ पंक्तियां याद आ गईं रेखा जी :
मेरी आँखों में अगर ख़्वाब तुम्हारा चमका
मैं यह समझूंगी मुक़द्दर का सितारा चमका
सीपियां चुनते हुए शाम हुई है मुझको
कोई आया न समंदर का किनारा चमका
फिर वही नाव, वही नाव में बैठे हुए लोग
फिर वही रात, वही हिज्र का तारा चमका
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दिल छू लेने वाली पंक्तियाँ हैं. बेहद ख़ूबसूरत !!!
यह किसकी लिखी कविता है?
शुक्रिया जितेंद्र जी इसे share करने के लिए.
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किसने लिखी हैं, यह तो मुझे याद नहीं रेखा जी । दस साल से ज़्यादा हो गए हैं पढ़े हुए । आपकी तरह मेरे दिल को भी छू गई थीं, इसीलिए याद रह गईं ।
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कोई बात नही.
आपकी याददाश्त बड़ी अच्छी है.
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Bahut bahut bahut achhi 💞💗
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