ज़िंदगी के रंग – 191

हमसे ना उम्मीद रखो सहारे की.

ख़ुद हीं लड़ रहे हैं नाउम्मीदी से.

वायदा है जिस दिन निकल आए,

पार कर लिया दरिया-ए-नाउम्मीद को.

सबसे बड़े मददगार बनेंगे.

 

12 thoughts on “ज़िंदगी के रंग – 191

  1. Beautiful but a bit gloomy. I suggest :
    सहारे की पतवारें औरों के लिए गढ़िये  
    अपनी नाउम्मीदी छोड़ आगे बढ़िये
    वायदा है जब आप औरों के मददगार बनेंगे
    बड़ी सहजता से  दरिया-ए-नाउम्मीद तरंगे !

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    1. Thanks Ravindra ji.
      हमेशा की तरह, आपने मुझे और मेरी पंक्तियों को सकारात्मकता की राह दिखलायी है. बेहद सुंदर पंक्तियाँ रची है आपने. बहुत शुक्रिया आपका.

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