जब जिंदगी से कोई आजाद होता है,
किसी और को यादों की कैद दे जाता है.
सीखना चाह रहे हैं कैद में रहकर आजाद होना।
काँच के चश्मे में कैद आँखों के आँसू ..अश्कों की तरह.
जब जिंदगी से कोई आजाद होता है,
किसी और को यादों की कैद दे जाता है.
सीखना चाह रहे हैं कैद में रहकर आजाद होना।
काँच के चश्मे में कैद आँखों के आँसू ..अश्कों की तरह.
“सीखना चाह रहे हैं कैद में रहकर आजाद होना।”
Waah!
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बहुत शुक्रिया प्रशंसा के लिए ।
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बहुत ही मर्मस्पर्शी बात कही है रेखा जी आपने । आपकी इस बात जैसा तो नहीं पर कुछ मिलते-जुलते संदर्भ वाला एक शेर मुझे याद आ रहा है :
हमने क़ैद-ए-कफ़स में सोचा था
हो के आज़ाद, मुस्कुराएंगे
किसको मालूम था, रिहा हो के
दिन ग़ुलामी के याद आएंगे
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मैं लिख कर अपने मन को हल्का करने की कोशिश कर रहीं हूँ. पर अक्सर उलटा हो जाता है.
आपका लिखा शेर दिल को छू गया. बहुत आभार !
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Sundar
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Shukriya
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