दफ्न पन्ने और बंद किताबें October 13, 2019October 14, 2019 Rekha Sahay यादें धुंधली पड़ती हैं समय के साथ, आंखों की रोशनी धुंधली पड़ती है समय के साथ, पर यादों से तारीखे क्यों नहीं धुंधली पड़ती? जिंदगी के किताब से? ना जाने क्यों हम खोलते हैं , दफ्न पन्नों और बंद किताबों को बारंबार । Rate this:Share this:FacebookMorePinterestTumblrLinkedInPocketRedditTwitterTelegramSkypeLike this:Like Loading... Related
पर तारीखे क्यों नहीं धुंधली पड़ती? जिंदगी के किताब से? tarikho ki jagah yaad yadein jyada better word rahega bahut thoughtful ..loved it 🙂 LikeLiked by 1 person Reply
कुछ खट्टी- मीठी तारीख़ें ज़िंदगी के साथ जुट जातीं हैं. चाह कर भी भूला नहीं जा सकता . तुम्हारा सुझाव अच्छा लगा . Thanks. LikeLiked by 1 person Reply
आपकी इस बात पर तो मैं कुछ नहीं कह सकता रेखा जी लेकिन एक शेर याद आ रहा है : मिट चले मेरी उम्मीदों की तरह हर्फ़ मगर आज तक तेरे ख़तों से तेरी ख़ुशबू न गई LikeLiked by 1 person Reply
इन ख़ूबसूरत पंक्तियों के लिए आभार जितेंद्र जी. बड़ा तकलीफ़देह है यह विरोधाभास .हम सब यादों से भागते भी है और उन में डूबना भी चाहते हैं. LikeLiked by 1 person Reply
कविता के लिहाज़ से सुंदर पर इसे अनुभूत करना बहुत ही दर्दनाक ! खैर इससे बाहर निकलने का प्रयास करना ही होता है ! बहरहाल सुंदर कविता LikeLiked by 1 person Reply
पर तारीखे क्यों नहीं धुंधली पड़ती?
जिंदगी के किताब से?
tarikho ki jagah yaad yadein jyada better word rahega
bahut thoughtful ..loved it 🙂
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कुछ खट्टी- मीठी तारीख़ें ज़िंदगी के साथ जुट जातीं हैं. चाह कर भी भूला नहीं जा सकता .
तुम्हारा सुझाव अच्छा लगा . Thanks.
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😊😊😊🌻💙
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आपकी इस बात पर तो मैं कुछ नहीं कह सकता रेखा जी लेकिन एक शेर याद आ रहा है :
मिट चले मेरी उम्मीदों की तरह हर्फ़ मगर
आज तक तेरे ख़तों से तेरी ख़ुशबू न गई
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इन ख़ूबसूरत पंक्तियों के लिए आभार जितेंद्र जी.
बड़ा तकलीफ़देह है यह विरोधाभास .हम सब यादों से भागते भी है और उन में डूबना भी चाहते हैं.
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कविता के लिहाज़ से सुंदर पर इसे अनुभूत करना बहुत ही दर्दनाक ! खैर इससे बाहर निकलने का प्रयास करना ही होता है ! बहरहाल सुंदर कविता
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बहुत धन्यवाद.
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So true Rekha. We like to revisit the past memories good or bad 🙂
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indeed, it may be full or pleasure or sorrows.
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