कैद तारीखों का October 10, 2019October 10, 2019 Rekha Sahay दीवार पर लगे कैलेंडर पर आज भी तारीख और साल वही है । ठहर गई है वह तारीख जिंदगी में भी । रिहा कर दो , बख्श दो तारीखों के कैद से । हाजिरी लगाना दर्द देता है इस मुकदमे में। Rate this:Share this:FacebookMorePinterestTumblrLinkedInPocketRedditTwitterTelegramLike Loading... Related
ये तो अंतस से निकले ज़ज़्बात हैं जो शब्दों में ढल गये ! अत्यंत सुन्दर अभिव्यक्ति, दिल को छू गई | LikeLiked by 1 person Reply
ये तो अंतस से निकले ज़ज़्बात हैं जो शब्दों में ढल गये ! अत्यंत सुन्दर अभिव्यक्ति, दिल को छू गई |
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बहुत आभार .
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