एक अच्छी सज़ा दी लोगों ने.
कंधा ना दिया, जब ज़रूरत थी सहारे की.
अपनी खंडित आत्मा…. मन और रूह
को सम्भालते सम्भालते समझ आया.
कंधा मिलता नहीं चलती सांसों के साथ.
एक अच्छी सज़ा दी लोगों ने.
कंधा ना दिया, जब ज़रूरत थी सहारे की.
अपनी खंडित आत्मा…. मन और रूह
को सम्भालते सम्भालते समझ आया.
कंधा मिलता नहीं चलती सांसों के साथ.
कविता अच्छी है जी परंतु ज्यादा कुछ समझ नहीं आया
LikeLiked by 1 person
शुक्रिया.
इसका यह अर्थ है-
जब हमें मदद या सहारे की ज़रूरत होती, तब शायद हीं कोई कंधा/सहारा देता है.
पर दुनिया से गुज़रने के बाद चार लोग आ जाते हैं कंधा देने.
अब कविता का अर्थ स्पष्ट है या नहीं? हो सके तो फिर से पढ़ कर देखिए और बताइए.
LikeLiked by 1 person
हा समझ गया , सत्य बात है बहुत सही
LikeLiked by 1 person
बहुत आभार आपका.
LikeLiked by 1 person
Swagat apka🙏😊
LikeLiked by 1 person