बिलकुल ! दोनों विचार एक दूसरे के परस्पर विरोधी हैं. पर सत्य है.
ज़्या पाल अस्तित्व को ज़रूरी बताते हैं, जबकि डेकार्ट की बातें भी अर्थहीन नहीं हैं. वे अस्तित्व के होने के बाद की बात करते हैं.
नहीं धनंजय, मेरा विषय मनोविज्ञान है.
लेकिन कुछ ना कुछ पढ़ते रहने की आदत है. इसलिए इन दो विचारों के बारे में थोड़ा पढ़ा है. और दोनों अपनी जगह महत्वपूर्ण हैं.
किसी को समझना बड़ा कठिन होता है. 😊
विचार और वाद भ्रम नहीं हैं बल्कि सीढ़ियाँ हैं. बुद्धिमान मनुष्य एक विचार/ सिद्धांत व्यक्त करता है, तब कोई और कुछ और नए विचार देता है. जिससे नई नई धारणाएँ और विषय बनते हैं.
जैसे अस्तित्व को मनाना पहली सीढ़ी / विचार है. बुद्धिवाद वह विचार है जो अस्तित्व को मान कर उससे आगे की बात करता है.
जैसे अगर अस्तित्व को मनाना पहली सीढ़ी / विचार है तब बुद्धिवाद उससे ऊपर के पायदान के विचार हैं.
समस्या सामान्य के लिए है उसने पास विचारों के लिये न समय है न ही समझ पाते है विश्व का एक मजबूत विचार साम्यवाद आज विश्व में चंद लोग समझते है। ऐसे ही है ईश्वरवाद!
dhananjay, समान्य समस्या कोसमझने ke लिए जिस बौद्धिकता की ज़रूरत है पता नहीं हमारे यहाँ लोग इसका इस्तेमाल क्यों नहीं करते हैं.
ख़ुशी की बात है कि आप के post ऐसी बातों पर रौशनी डालते हैं.
Acharya rajneesh ने साम्यवाद की सही नहीं ठहराया था क्योंकि सभी को एक बराबर रखने से किसी भी desh की तरक़्क़ी धीमी पड़ sakti है और ईश्वरवाद को इस मामले में सही ठहराया जा सकता कि अध्यात्म ही वह चीज़ है jo सच्ची खुशियाँ दे सकता है और इन खुशियों की खोज में saari दुनिया आज परेशान हैं
लेकिन लोकतंत्र के नाम पर जो जबरजस्ती समानता की जा रही है उसे न्यायोचित भी ठहराया जाता है। यदि धर्म की बात करे तो वह कहता है पूर्व के कर्म जिसे भाग्य कहते है वह जिम्मेदार है इस जन्म में कितना सुख और कितना दुःख मिलना है। आध्यात्म की बात की जाय तो वह स्तर की बात करता है उसे ऊपर ले जाने के लिए सतत चिंतन,मनन ,योग्याभ्यास से ऊपर उठ सकते है। योग मनोविकार,चित्त का निरोध कर सकता है। भौतिक आधार पर आध्यात्मिक मन या आत्मा को शांति कैसे मिल सकती है।
वैसे देखा जाय तो आचार्य रजनीश अपने संभोग से समाधि में स्वयं फस जाते है। उनका चिंतक बात आध्यत्म की करके भौतिकता में ही फसा देता है।
धर्म, जातीयता जैसी बातें आम लोगों की आस्था और जीवनशैली हैं Rajneeti में इनका प्रयोग नहीं होनी चाहिये। इसलिए यह तो ग़लत हो ही रहा है। जहाँ तक dharm की बात है या व्यक्तिगत aastha है।जिसमें shamil बहुत सी बातें और अंध vishwas को प्रश्रय dena उचित नहीं है। हाँ मैं अध्यात्म को महत्वपूर्ण मानती हूँ.ईश्वरवाद दरअसल आध्यात्मिक पक्ष होना चाहिए jo dhyaan yog chintan manan जैसी बातों को shamil करता है जिससे हम मनोविज्ञान में IQ या Spiritual quotient करते हैं। Acharya rajneesh की बहुत सी बातें गलत thi पर साम्यवाद लेकर उन्होंने jo कहा उसका सबूत है। जहाँ साम्यवाद था और वह रुस टुकड़ों में टूट gaya।
साम्यवाद का विचार पन्ने तक सबसे मजबूत विचार है किंतु जब समाज में इम्प्लीमेंट करते है तो सामान्य जन को कीमत सबसे ज्यादा चुकानी पड़ी। जवानी के जोश तक ठीक है किंतु अधपकी उम्र में व्यक्ति समाज से ज्यादा स्वयं को खोजने का प्रयास करता है। लोकधरातल पर उसे आनंद की प्राप्ति नहीं होती
साम्यवाद आज सबसे मजबूत विचारधारा मानी जा सकती है पर सच तो यह है कि सभी को एक बराबर तो प्राकृतिक ने भी नहीं बनाया है । और जहां तक कीमत चुकाने की बात है हमेशा लोग/जनता ही चुकाती है । मेरे ख्याल में थोड़ी उम्र होने के बाद तो लोग चीजों के साथ एडजस्ट करना सीखने लगते हैं ।
दरअसल इसका सबसे ज्यादा मूल्य युवा चुकाते हैं । क्योंकि उनकी योग्यता, ऊर्जा के अनुसार उन्हें सही मार्गदर्शन, नौकरी, उपलब्धियां…. कुछ भी प्राप्त नहीं होती है और इन सब के फलस्वरूप उन में जो आक्रोश आता है उसे भी गलत ठहराया जाता है । मुझे तो सबसे अधिक सहानुभूति युवा पीढ़ी से होती है। जो हमारे लिये सबसे अनमोल हैं, हमारे देश के भविष्य हैं और दरअसल हमारी शक्ति भी हैं ।
सोच सही और कार्य करने का अवसर हो,बंधन न हो तो देश का युवा बहुत कुछ दे सकता है लेकिन भारत की जितनी जनसंख्या है उसके अनुसार उद्योग नहीं है। 17.5 जनसंख्या के अनुपात में यदि विश्व GDP हमारा 1.8 से 17.5 हो जाये तो सभी क्षेत्रों में तरक्की हो।
आपके सपने बङे और अच्छे हैं। खुशी हुई जानकर । आपके पास बहुत अच्छी जानकारियां हैं । आपके पोस्ट मैंने पढ़ें हैं जो मुझे बड़े अच्छे लगे। उनमें आक्रोश भी है और सच्चाई भी है। भारत एक युवा देश है। अगर सही मार्ग दर्शन मिले कुछ भी असंभव नहीं है।
ये अधिकारी से सबसे बड़े भ्रस्ट है ये ही नेता को सब तरकीब सिखाते है कोई भ्रष्ट्राचार के
नाम पर इस्तीफा नहीं देता । लोकतंत्र के नाम पर जरूर देता है। भारत मे अभी भी उपनिवेशी सिस्टम का अंत नहीं हुआ है । मानसिक गुलामी दिनोदिन बढ़ती जा रही है।
Mains का exam था । अच्छा लगा लोग बहुत अच्छे है । मैं प्योर वेजटेरियन हू आप के यहाँ मांसाहार बहुत है मेरे होटल के बगल के होटल जो नाश्ते का था तो मुझे रोज दूध गर्म करके चीनी अपनी तरफ से डाल के पिलाया कहा कि आप ब्राह्मण हो और प्रयाग से। ये बहुत ही अच्छा लगा । लोग अच्छे है शायद हम लोग ही कम अच्छे है। कारण जो भी रिश्ते आधुनिक होने में दरकते जा रहे है। प्रेम का स्थान अब स्वार्थ ले ले रहा है।
कैसा हुआ मेंस का एग्जाम? आपको लोग अच्छे लगे यह मेरे लिए बहुत खुशी की बात है । हां नॉनवेज का चलन थोड़ा ज्यादा है। देखिए आम लोगों में धर्म के प्रति कितना सम्मान भरा है। मैंने कहा था ना धर्म जीवनशैली है। इसे राजनीति में बिल्कुल नहीं लाना चाहिए क्योंकि लोग हर जगह अच्छे हैं। वोट बैंक बनाकर मन में कड़वाहट भरना अच्छी बात नहीं है। इन सब बातों से ही स्वार्थ औरआपसी सीमाएं बढ़ती जा रही है । यूपीएससी नतिजे के लिए आपको बहुत शुभकामनाएं।
कुछ बड़ी सोच है जो नौकरी तक रुकती नहीं है फिर भी मार्ग शायद ऑफिसर बनने से निकलना चाहा। या ईगो बिना सेटिस्फाई हुये जाने नहीं देता है कहता है एक बार और दो यार🏃
सुन्दर अभिव्यक्ति ! सच कहा है कि :
हमसे विचार हैं
विचारों से हम नहीं|
पर
हमारे विचार कैसे हैं
बताते
हम गलत हैं या सही !
The image in the post is awesome.
डेकार्ट कहता है कि मैं सोचता हूं इस लिए मैं हूं। ज्यां पाल सात्र कहता है पहले जब तुम होंगे तभी सोचोगे। पहला बुद्धिवादी दूसरा अस्तित्ववादी ।।
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बिलकुल ! दोनों विचार एक दूसरे के परस्पर विरोधी हैं. पर सत्य है.
ज़्या पाल अस्तित्व को ज़रूरी बताते हैं, जबकि डेकार्ट की बातें भी अर्थहीन नहीं हैं. वे अस्तित्व के होने के बाद की बात करते हैं.
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मैम दर्शनशास्त्र आपने भी पढ़ा है।
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नहीं धनंजय, मेरा विषय मनोविज्ञान है.
लेकिन कुछ ना कुछ पढ़ते रहने की आदत है. इसलिए इन दो विचारों के बारे में थोड़ा पढ़ा है. और दोनों अपनी जगह महत्वपूर्ण हैं.
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बढ़िया है तब तो किसी को समझने में बहुत आसानी होती होगी।
एक प्रश्न आप से इतने तरह के विचार और वाद क्या मन को भ्रमित करने के लिये नहीं बनाये गये?
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किसी को समझना बड़ा कठिन होता है. 😊
विचार और वाद भ्रम नहीं हैं बल्कि सीढ़ियाँ हैं. बुद्धिमान मनुष्य एक विचार/ सिद्धांत व्यक्त करता है, तब कोई और कुछ और नए विचार देता है. जिससे नई नई धारणाएँ और विषय बनते हैं.
जैसे अस्तित्व को मनाना पहली सीढ़ी / विचार है. बुद्धिवाद वह विचार है जो अस्तित्व को मान कर उससे आगे की बात करता है.
जैसे अगर अस्तित्व को मनाना पहली सीढ़ी / विचार है तब बुद्धिवाद उससे ऊपर के पायदान के विचार हैं.
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समस्या सामान्य के लिए है उसने पास विचारों के लिये न समय है न ही समझ पाते है विश्व का एक मजबूत विचार साम्यवाद आज विश्व में चंद लोग समझते है। ऐसे ही है ईश्वरवाद!
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dhananjay, समान्य समस्या कोसमझने ke लिए जिस बौद्धिकता की ज़रूरत है पता नहीं हमारे यहाँ लोग इसका इस्तेमाल क्यों नहीं करते हैं.
ख़ुशी की बात है कि आप के post ऐसी बातों पर रौशनी डालते हैं.
Acharya rajneesh ने साम्यवाद की सही नहीं ठहराया था क्योंकि सभी को एक बराबर रखने से किसी भी desh की तरक़्क़ी धीमी पड़ sakti है और ईश्वरवाद को इस मामले में सही ठहराया जा सकता कि अध्यात्म ही वह चीज़ है jo सच्ची खुशियाँ दे सकता है और इन खुशियों की खोज में saari दुनिया आज परेशान हैं
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लेकिन लोकतंत्र के नाम पर जो जबरजस्ती समानता की जा रही है उसे न्यायोचित भी ठहराया जाता है। यदि धर्म की बात करे तो वह कहता है पूर्व के कर्म जिसे भाग्य कहते है वह जिम्मेदार है इस जन्म में कितना सुख और कितना दुःख मिलना है। आध्यात्म की बात की जाय तो वह स्तर की बात करता है उसे ऊपर ले जाने के लिए सतत चिंतन,मनन ,योग्याभ्यास से ऊपर उठ सकते है। योग मनोविकार,चित्त का निरोध कर सकता है। भौतिक आधार पर आध्यात्मिक मन या आत्मा को शांति कैसे मिल सकती है।
वैसे देखा जाय तो आचार्य रजनीश अपने संभोग से समाधि में स्वयं फस जाते है। उनका चिंतक बात आध्यत्म की करके भौतिकता में ही फसा देता है।
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धर्म, जातीयता जैसी बातें आम लोगों की आस्था और जीवनशैली हैं Rajneeti में इनका प्रयोग नहीं होनी चाहिये। इसलिए यह तो ग़लत हो ही रहा है। जहाँ तक dharm की बात है या व्यक्तिगत aastha है।जिसमें shamil बहुत सी बातें और अंध vishwas को प्रश्रय dena उचित नहीं है। हाँ मैं अध्यात्म को महत्वपूर्ण मानती हूँ.ईश्वरवाद दरअसल आध्यात्मिक पक्ष होना चाहिए jo dhyaan yog chintan manan जैसी बातों को shamil करता है जिससे हम मनोविज्ञान में IQ या Spiritual quotient करते हैं। Acharya rajneesh की बहुत सी बातें गलत thi पर साम्यवाद लेकर उन्होंने jo कहा उसका सबूत है। जहाँ साम्यवाद था और वह रुस टुकड़ों में टूट gaya।
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साम्यवाद का विचार पन्ने तक सबसे मजबूत विचार है किंतु जब समाज में इम्प्लीमेंट करते है तो सामान्य जन को कीमत सबसे ज्यादा चुकानी पड़ी। जवानी के जोश तक ठीक है किंतु अधपकी उम्र में व्यक्ति समाज से ज्यादा स्वयं को खोजने का प्रयास करता है। लोकधरातल पर उसे आनंद की प्राप्ति नहीं होती
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साम्यवाद आज सबसे मजबूत विचारधारा मानी जा सकती है पर सच तो यह है कि सभी को एक बराबर तो प्राकृतिक ने भी नहीं बनाया है । और जहां तक कीमत चुकाने की बात है हमेशा लोग/जनता ही चुकाती है । मेरे ख्याल में थोड़ी उम्र होने के बाद तो लोग चीजों के साथ एडजस्ट करना सीखने लगते हैं ।
दरअसल इसका सबसे ज्यादा मूल्य युवा चुकाते हैं । क्योंकि उनकी योग्यता, ऊर्जा के अनुसार उन्हें सही मार्गदर्शन, नौकरी, उपलब्धियां…. कुछ भी प्राप्त नहीं होती है और इन सब के फलस्वरूप उन में जो आक्रोश आता है उसे भी गलत ठहराया जाता है । मुझे तो सबसे अधिक सहानुभूति युवा पीढ़ी से होती है। जो हमारे लिये सबसे अनमोल हैं, हमारे देश के भविष्य हैं और दरअसल हमारी शक्ति भी हैं ।
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सोच सही और कार्य करने का अवसर हो,बंधन न हो तो देश का युवा बहुत कुछ दे सकता है लेकिन भारत की जितनी जनसंख्या है उसके अनुसार उद्योग नहीं है। 17.5 जनसंख्या के अनुपात में यदि विश्व GDP हमारा 1.8 से 17.5 हो जाये तो सभी क्षेत्रों में तरक्की हो।
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आपके सपने बङे और अच्छे हैं। खुशी हुई जानकर । आपके पास बहुत अच्छी जानकारियां हैं । आपके पोस्ट मैंने पढ़ें हैं जो मुझे बड़े अच्छे लगे। उनमें आक्रोश भी है और सच्चाई भी है। भारत एक युवा देश है। अगर सही मार्ग दर्शन मिले कुछ भी असंभव नहीं है।
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धनंजय, आप क्या करते हैं? और कहां से हैं?
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मैं प्रयागराज से हूं सिविल सर्विसेज की तैयारी, मनोविज्ञान मेरा भी ग्रेजुएशन में रहा है दर्शनशास्त्र के साथ
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अरे वाह! बड़ी अच्छी जगह से हैं ,और सब्जेक्ट भी अच्छे है। सिविल सर्विसेज के लिए बहुत शुभकामनाएं!
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धन्यवाद ,अब एक सब्जेक्ट हो गया है तो history है अब। साथ ही पढ़ने का और घूमने का काम बहुत करते है। वेद से लेकर सभी शास्त्र को
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अच्छा , अपने सब्जेक्ट बदल लिया है ? पढ़ते रहिए पढ़ना हमेशा काम आता है घूमना भी। अच्छा है वेद पुराणों की बात जानी होगी तब आप से सुझाव ले सकती हूं।
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विल्कुल शास्त्र में कुछ भी पूछ सकती है,विश्व राजनीति में🙏🙏🙏
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शुक्रिया।
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🙏🙏🙏🙏
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Sub ग्रेजुएशन में तीनो थे। हा पत्रकारिता की भी मास्टर डिग्री है।
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पत्रकारिता अच्छा विषय है। मुझे तो पत्रकारिता के बारे में कुछ भी जानकारी नहीं है बस लिखना पसंद है।
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लेकिन ये सिविल की प्रिपरेशन सब खा जाती है उम्र,चाहत , स्टेमना और कुछ करने की ।
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मैं आपकी बात समझ सकती हूं । या बहुत कठिन एग्जाम है । अफसोस तब होता है जब कम पढ़े लिखे नेता इन के मूल्य को नहीं समझते हैं
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ये अधिकारी से सबसे बड़े भ्रस्ट है ये ही नेता को सब तरकीब सिखाते है कोई भ्रष्ट्राचार के
नाम पर इस्तीफा नहीं देता । लोकतंत्र के नाम पर जरूर देता है। भारत मे अभी भी उपनिवेशी सिस्टम का अंत नहीं हुआ है । मानसिक गुलामी दिनोदिन बढ़ती जा रही है।
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बिलकुल
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आप कहाँ से है
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मैं रांची से हूं पर पुणे में रहती हूं।
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रांची मैं एक हप्ते रहा हूं घूमा पूरा है।
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कुछ काम से? कैसा लगा राँची, धोनी का शहर?
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Mains का exam था । अच्छा लगा लोग बहुत अच्छे है । मैं प्योर वेजटेरियन हू आप के यहाँ मांसाहार बहुत है मेरे होटल के बगल के होटल जो नाश्ते का था तो मुझे रोज दूध गर्म करके चीनी अपनी तरफ से डाल के पिलाया कहा कि आप ब्राह्मण हो और प्रयाग से। ये बहुत ही अच्छा लगा । लोग अच्छे है शायद हम लोग ही कम अच्छे है। कारण जो भी रिश्ते आधुनिक होने में दरकते जा रहे है। प्रेम का स्थान अब स्वार्थ ले ले रहा है।
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कैसा हुआ मेंस का एग्जाम? आपको लोग अच्छे लगे यह मेरे लिए बहुत खुशी की बात है । हां नॉनवेज का चलन थोड़ा ज्यादा है। देखिए आम लोगों में धर्म के प्रति कितना सम्मान भरा है। मैंने कहा था ना धर्म जीवनशैली है। इसे राजनीति में बिल्कुल नहीं लाना चाहिए क्योंकि लोग हर जगह अच्छे हैं। वोट बैंक बनाकर मन में कड़वाहट भरना अच्छी बात नहीं है। इन सब बातों से ही स्वार्थ औरआपसी सीमाएं बढ़ती जा रही है । यूपीएससी नतिजे के लिए आपको बहुत शुभकामनाएं।
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थोड़ा लक कहे या भाग्य 20 मेंश 3 इंटरव्यू परिणाम शून्य। अभी इसमें तीन के आने बाकी है mains के रिजल्ट ।।
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20 मतलब?
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प्री,mains,इंटरव्यू होता है। उसमें 20 mains
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कितनी बार दिया है upsc?
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वो पूरे हो गये है अब Uppsc चल रहा है।
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ok.
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एयरफोर्स छोड़ के आये थे IPS बनने😖😮
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एयरफोर्स का job छोङा क्यों?
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मन में जो कीड़ा है बड़ा और लोगों के लिए करने का
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great.
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Thx🙏
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welcome, nice chatting to you.
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आपका भी सुस्वागतम ! अतिशोभनीय वार्ता
अच्छा लगा जी😐
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आभार आपका।
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😎😄🤗
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banks का नहीं दिया ?
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कुछ बड़ी सोच है जो नौकरी तक रुकती नहीं है फिर भी मार्ग शायद ऑफिसर बनने से निकलना चाहा। या ईगो बिना सेटिस्फाई हुये जाने नहीं देता है कहता है एक बार और दो यार🏃
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try…. try again?? try करने में हर्ज नहीं।
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मन के हारे हार है मन के जीते जीत
मन ही मिलावत राम से मन ही करत फजीत
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🙂
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बहुत सुंदर👌, ये सब समझ का फेर है जी बल्कि मैं ही सबकुछ हूँ। सामन्यतः अहंकार के रूप में नहीं।
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धन्यवाद संगम.
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🙏😊
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सुन्दर अभिव्यक्ति ! सच कहा है कि :
हमसे विचार हैं
विचारों से हम नहीं|
पर
हमारे विचार कैसे हैं
बताते
हम गलत हैं या सही !
The image in the post is awesome.
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आपका बहुत आभार !
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बहुत सही कहा। हमसे विचार हैं। 👌👌
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आपका बहुत आभार .
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