ज़िंदगी के रंग – 188

दिल से अपने आप निकली हुई बातें,

कब टपकते दर्द के साथ मिल कर,

रेख़ताग़ज़ल बन जातीं है, मालूम नहीं……

अर्थ –

रेख़ताअरबी फ़ारसी मिश्रित हिंदी गाना, ग़ज़ल

12 thoughts on “ज़िंदगी के रंग – 188

  1. दर्द भरे दिल से शब्दों का सैलाब आता है और काव्य बन जाती है। बहुत खूब।👌👌

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